________________
દર
हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। देवताओं के यहां जाते हैं पर मूर्ति माननेवाले क्यों जाते हैं ?
उत्तर : जैन लोग जैन देवी देवताओं के सिवाय किसी अन्य देव देवियों की मान्यता व पूजा नहीं करते थे विक्रम संवत १७८५ तक मारवाड के तमाम जैनोंका एक ही मूर्ति मानने का धर्म था । वहां तक जैन अपनी प्रतिज्ञा पर अडग थे । बाद मूर्ति मानने, नहीं मानने का भेद पडा । कई अज्ञ लोगों ने जिनमंदिरो को छोडा, तो उस हालत में वे अन्य देव देवियों को जाकर शिर झूकाने लगे । जातिव्यवहार एक (सामिल) होने से मूर्ति माननेवालों की लडकियां, मूर्ति नहीं माननेवालो को ब्याही और मूर्ति नहीं माननेवालों की बेटियां माननेवालों को दी । इस हालत में जैनियों के घरो में आई हुई स्थानकवासियों की बेटियां अपने पीहर के संस्कारो के कारण अन्य देव देवियो को मानने लगीं इससे यह प्रवृत्ति उभय पक्ष में चल पडी तथापि जो पक्के जैन है वे तो आज भी अपनी प्रतिज्ञा पर डटे हुये हैंजो अपवाद हैं वह भी