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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। उनके साधुओं के सिवाय किसी को भी दान देने में पाप बतलाते हैं इनका मत तो वि.सं.१८१५ में भीखमस्वामी ने निकाला है।
उत्तर : जैसे तेरहपन्थियोंने दया दान में पाप बतलाया, वैसे स्थानकवासियोंने शास्त्रोक्त मूर्तिपूजा को पाप बतलाया, जैसे तेरहपन्थी समाज को वि.सं.१८१५ में भीखमजीने निकाला, वैसे ही स्थानकवासी मत को भी वि.सं. १७०८ में लवजीस्वामीने निकाला । बतलाइये उत्सूत्र प्ररुपणा में स्थानकवासी और तेरहपन्थियों में क्या असमानता है ? हां ! दया दान के विषय में हम और आप (स्थानकवासी) एक ही
प्रश्न ३९ : जब आप मूर्तिपूजा अनादि बतलाते हो . तब दूसरे लोग उनका खण्डन क्यों करते हैं ?
उत्तर : जो विद्वान शास्त्रज्ञ हैं, वे न तो मूर्ति का खण्डन करते थे और न करते हैं । बल्कि जिन मूर्तिपूजक आचार्योंने