SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। ५७ बहुत से राजा, महाराजा व क्षत्रियादि अजैनों को जैन ओसवालादि बनाया उनका महान उपकार समझते हैं और जो अल्पज्ञ या जैनशास्त्रों के अज्ञाता हैं वे अपनी नामवरी के लिये या भद्रिक जनता को अपने जाल में फंसाए रखने को यदि मूर्ति का खण्डन करते हैं तो उनका समाज पर क्या प्रभाव पडता है ? कुछ नहीं उनके कहने मात्र से मूर्ति माननेवालों पर तो क्या पर नहीं माननेवालों पर भी असर नहीं होता है। वे अपने ग्राम के सिवाय बाहिर तीर्थों पर जाते हैं वहां निशंक सेवा पूजा करते हैं और उनको बडा भारी आनंद भी आता है। फिर भी उन लोगो के खण्डन से हमको कोई नुकसान नहीं पर एक किस्म से लाभ ही हुआ है । ज्यों ज्यों वे कुयुक्तियों और असभ्यता पूर्वक हलके शब्दों में मूर्ति की निन्दा करते हैं त्यों त्यों मूर्तिपूजकों की मूर्ति पर श्रद्धा दृढ एवं मजबूत होती जा रही है । इतना ही नहीं पर किसी जमाने से सदोपदेश के अभाव से भद्रिक लोग मूर्तिपूजा से दूर रहते थे
SR No.006121
Book TitleHaa Murti Pooja Shastrokta Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy