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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है । तपस्या के आरम्भ में ही पत्रों द्वारा जाहिर करते हैं कि अमुक स्वामीजी इतने उपवास किये, अमुक दिन पारणा होगा इस सुअवसर पर सकुटुम्ब पधार कर शासन शोभा बढावें । इस पारणा पर सेंकडों हजारों भावुक एकत्र हो, बडा आरम्भ समारम्भ कर स्वामीजी का माल लूंट जाते हैं । इसका नाम धाम धूम है या भक्ति की ओट में आरम्भ है ? ऐसे अनेक कार्य है कि मूर्तिपूजकों से कई गुना धाम धूम और आरम्भ करते हैं जरा आंख उठा के देखो आप पर भी जमाने ने कैसा प्रभाव डाला है ?
प्रश्न ३७ : यदि मंदिर, मूर्ति, शास्त्र एवं इतिहास प्रमाणों से सिद्ध है फिर स्थानकवासी खण्डन क्यों करते हैं ? क्या इतने बडे समुदाय में कोई आत्मार्थी नहीं है कि जो उत्सूत्र भाषण कर वज्रपाप का भागी बनता है ?
उत्तर : यह निश्चयात्मक नहीं कहा जा सकता है कि किसी समुदाय में आत्मार्थी है ही नहीं पर इस सवाल का