SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३ हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। को छोडना । धामधूम का जमाने में केवल मंदिर पर ही नहीं परंतु सब वस्तु पर समान भाव से प्रभाव डाला हैं । आप स्वयं सोचें कि आरम्भ से डरनेवाले लोगों के पूज्यजी आदि स्वयं बडे बडे शहरों में चातुर्मास करते हैं, उनके दर्शनार्थी हजारों भावुक आते हैं । उनके लिये चन्दा कर चौका खोला जाता है । रसोईये प्रायः विधर्मी ही होते हैं, नीलण बूलण और कीडो वाले छाणे (कण्डे) और लकडियों जल्मने है । पर्युषणों में खास धर्माराधन के दिनों में बडी बडी भटियें जला जाती हैं । दो दो तीन तीन मण चावल पकाते है । जिनका गरम गरम (अत्युष्ण जल भूमि पर डाला जाता है जिससे असंख्य प्राणी मरते है, बताइये क्या आपका यही परम पुनित अहिंसा धर्म है ? हमारे यहां मंदिरो में तो एकाध कलश ठण्डा जल और एकाध धूपबत्ती काम में ली जाती हैं । उसे आरम्भ २ के नाम से पुकारते हो और घर का पता ही नहीं। यह अनूठा न्याय आपको किसने सिखाया ? साधु हमेशा गुप्त तप और पारणा करते हैं पर आज तो अहिंसा के पैगम्बर
SR No.006121
Book TitleHaa Murti Pooja Shastrokta Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy