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________________ हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। वैद्य ने खीलें निकाल ली, परंतु भगवान् का दोनों पर समभाव ही रहा, जब स्वयं तीर्थंकरों का समभाव है तो उनकी मूर्तियों में तो समभाव का होना स्वाभाविक ही है। अच्छा ! अब हम थोडा सा आपसे भी पूछ लेते हैं कि जब वीतराग की वाणी के शास्त्रों में पेंतीस गण कहे हैं तो फिर आपके सूत्रों को कीडे कैसे खा जाते हैं? तथा यवनोंने उन्हें जला कैसे दिया ? और चोर उन्हें चुराकर कैसे ले जाते हैं ? क्या इससे सूत्रों का महत्व घट जाता है ? यदि नहीं तो इसी भांति मूर्तियों का भी समझ लीजिये। मित्रो ! ये कुतर्के केवल पक्षपात से पैदा हुई हैं यदि समदृष्टि से देखा जाय तब तो यही निश्चय ठहरता है कि ये मूर्तिएं और सूत्र, जीवों के कल्याण करने में निमित्त कारण मात्र हैं । इन की सेवा, भक्ति, पठन, श्रवणादि से परिणामों की शुद्धता, निर्मलता होती है । यही आत्मा का विकास है, इसलिये मूर्तियाँ और सूत्र वंदनीय एवं पूजनीय है।
SR No.006121
Book TitleHaa Murti Pooja Shastrokta Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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