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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। क्यों ले जाते हैं, एवं मुसलमान लोगों ने अनेक मन्दिर मूर्तियां तोड कैसे डाली ? इत्यादि।
उत्तर : हमारे वीतराग की यही तो वीतरागिता है कि उन्हें किसी से रागद्वेष या प्रतिबन्ध का अंश मात्र नहीं है । चाहे कोई उन्हें पूजे या उनकी निंदा करें, उनका मान करें या अपमान करें, चाहे कोई द्रव्य चढा जावे या ले जावे, चाहे कोई भक्ति करे या आशातना करें । उन्हें कोई पुष्पाहार पहिना दें या कोई अस्थिमाला आकर गले में डाल दें इससे क्या ? वे तो रागद्वेष से पर हैं उन्हें न किसी से विरोध है, और न किसी से सौहार्द, वे तो समभाव हैं, देखिये-भगवान् पार्श्वनाथ को कमठ ने उपसर्ग किया और धरणेन्द्रने भगवान की भक्ति की पर प्रभु पार्श्वनाथ का तो दोनों पर समभाव ही रहा है । जैसा कि कहा है। .
'कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति । प्रभोस्तुल्य मनोवृत्तिः पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः ।।'
भगवान महावीर के कानों में गोवाले ने खीलें ठोकी,