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आराम करता है जंगल में । वृक्षों के फल खा लेता है, झरनों का पानी पी लेता है।
चलते चलते वह रत्नपुर नाम के नगर के पास पहुँच गया । नगर के बाहर सुंदर बगीचा था । कुमार बगीचे में गया और एक वृक्ष के तले विश्राम करने बैठा।
उसके कानों पर मधुर ध्वनि टकराने लगी । ध्वनि धीर-गंभीर सागर जैसी थी । कुमार खड़ा हुआ और आवाज की दिशा में चलने लगा।
एक तेजस्वी मुनिराज को देखा ।
धर्मोपदेश दे रहे थे, कुछ स्त्री-पुरुष तन्मय हो सुन रहे थे । चन्द्रकुमार भी वहाँ जाकर बैठ गया और उपदेश सुनने लगा।
___ मुनिराज ने कहा : 'अपराध करने वाले जीवों की भी हिंसा नहीं करनी चाहिये, तो फिर निरपराधी जीवों की तो हिंसा करने का प्रश्न ही नहीं उठता है। अहिंसा धर्म का पालन करने से जीवात्मा को आरोग्य और सौभाग्य प्राप्त होता है । स्वर्ग और मोक्ष मिलता है।'
चन्द्रकुमार को मुनिराज का उपदेश अच्छा लगा । प्रवचन पूर्ण होने पर, कुमार ने गुरुदेव को प्रणाम कर कहा : गुरुदेव, मैं अपराधी जीवों को भी नही मारूँगा । राजा का आग्रह होने पर अथवा अपनी वीरता बताने के लिये भी मैं दूसरे जीवों को नहीं मारूँगा । आप मुझे प्रतिज्ञा देने की कृपा करें ।
गुरुदेव ने प्रतिज्ञा दी । कुमार ने प्रणाम किया और वह नगर में गया।
रत्नपुर नगर का राजा था जयसेन । उसने चन्द्रकुमार के रूप, गुण और पराक्रम देखकर, उसको अपनी सेवा में नियुक्त कर दिया । कुमार ने अपने गुणों से व उचित कर्त्तव्यों के सुंदर पालन से राजा का मन मोह लिया । राजा का चन्द्र के ऊपर संपूर्ण विश्वास हो गया।
एक दिन राजा ने चन्द्रकुमार को एकान्त में बुलाया और कहा : चन्द्र, देवराज इन्द्र के साथ युद्ध कर सकें वैसे वीर सुभट हैं मेरे पास, परंतु मेरा अनुमान है तेरा पराक्रम उनसे भी ज्यादा है । तेरे बाहु..तेरा सीना...तेरी दृष्टि ...सब तेरे अपूर्व पराक्रम का संकेत देते हैं ।
चन्द्र, एक डाकू है..उसका नाम है कुंभ । वह अति दुष्ट है । शस्त्रसज्ज उनके साथी डाकुओं के साथ वह आता है, कभी गायों का अपहरण कर जाता है, कभी महिलाओं को उठाकर ले जाता है...कभी साधुओं की भी हत्या कर देता है।
वह कुंभ एक ऐसे दुर्गम किले में रहता है कि जहाँ यमराज भी प्रवेश नहीं कर सकता । किले पर डाकू शस्त्रसज्ज होकर चौकी करते हैं।
कुमार, क्या तू उस दुर्ग में प्रवेश कर सकता है? और जब वह सोया हो, उस समय उस पर तलवार का प्रहार कर मार सकता है?
चन्द्र ने राजा का प्रणाम कर विनय से कहा : हे पितातुल्य राजेश्वर, युद्ध के अलावा किसी को मैं
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