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नही मार सकता, मेरी प्रतिज्ञा है । और युद्ध में जो भी शस्त्र रहित हो जाता है, जो युद्ध से विरक्त हो जाता है, भयभीत हो जाता है... उनको भी मैं नहीं मारता हूँ ।
चन्द्र का धर्ममय और नीतिपूर्ण निर्णय जानकर राजा आनंदित हुआ और चन्द्र को धन्यवाद दिया। चन्द्र ने कहा : महाराज, समय आने पर मै उस डाकू को जिंदा ही पकड़ कर आपके सामने उपस्थित कर दूंगा ।
राजा ने चन्द्र को अपने अंगरक्षकों का नेता बनाया है और मंत्री मंडल में प्रमुख स्थान दिया । चन्द्र ने अपने गुप्तचरों को सीमाप्रदेश में भेज दिये और कहा- जब वह कुख्यात डाकू कुंभ अपने राज्य की सीमा में प्रवेश करे, तुरंत ही मुझे सूचित करें ।
और, एक दिन समाचार मिला कि पूर्व दिशा की सीमा से कुंभ अपने साथियों के साथ राज्य में प्रवेश कर रहा है ।
चन्द्र कुशल सैनिकों के साथ निकल पड़ा। आगे से और पीछे से उसने कुंभ डाकू का रास्ता रोक लिया। कुंभ को मालूम हो गया कि वह बुरी तरह फंस गया है। जैसे जंगल में चारों ओर आग लगी हो और गजराज व्याकुल हो चारों दिशाओं में बचने के लिये दौड़ता है, वैसे कुंभ डाकू चारों दिशाओं में अपने घोड़े को दौड़ाता है...परंतु चारों तरफ शस्त्रधारी सैनिकों को खड़े हुए देखता है। वह निराश हो जाता है। हम थोड़े हैं और सैनिक ज्यादा है। युद्ध में मौत निश्चित है । क्या करूं?
कुंभ सोचता हुआ खड़ा है, इतने में दो हाथों में दो तलवार लिये, काले घोड़े पर बैठा चन्द्रकुमार उसके सामने आ जाता है। सैनिक डाकुओं को चारों ओर से घेर लेते हैं ।
कुंभ ने चन्द्रकुमार को देखा । चन्द्र ने कहा : 'दस्युराज, शस्त्र नीचे जमीन पर रख दो और शरण में आ जाओ।'
कुंभ घोड़े पर से नीचे आ गया, शस्त्र जमीन पर रख दिये । वह चन्द्रकुमार के पास आया । चन्द्र घोड़े पर से नीचे उतर गया। दोनों तलवारें सैनिक को दे दी । कुंभ चन्द्र के चरणों में गिर पड़ा । चन्द्र ने दो हाथों से कुंभ को उठाया और अपनी छाती से लगाया। फिर उसने कुंभ को बताया
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कुंभ! मेरा नाम चन्द्र है, मैं महाराज का सेनापति हूँ । यदि तू चोरी... डाका.. बलात्कार.. अपहरण जैसे कुत्सितकर्म छोड़ देता है, तो मैं महाराजा को विनंती कर तुझे मौत की सजा से मुक्ति दिला सकता हूँ। कुंभ ने कहा : 'हे वीरपुरुष, मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ। आज से मैं एक भी कुत्सित कर्म नहीं करूंगा।'
'मुझे संतोष हुआ कुंभ | तेरे जैसा पराक्रमी वीर पुरुष प्रजा का अब रक्षक बनेगा । महाराजा भी प्रसन्न होंगे।'
कुंभ और उसके साथियों को लेकर चन्द्रकुमार नगर में आया । महाराज जयसेन ने कुमार का
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