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________________ 15. सूत्र एवं विधि A. सूत्र (आ) सकलार्हत् (इ) बडी शांति (अ) स्नातस्या (ई) संतिकरं B.अर्थ (अ) जगचिंतामणि से जयवीयराय C.विधि (अ) पक्खी (आ) चौमासिक (इ) संवत्सरी प्रतिक्रमण 16. कहानी अनुबंध अहिंसा परमो धर्मः A. सूर्य एवं चन्द्र (प्रथम व्रत) अहिंसा आत्मसात् होती है तो वैर का त्याग हो जाता है। जयपुर नाम का नगर था । सुंदर था, समृद्ध था । वहाँ का राजा था शत्रुजय । पराक्रमी था, यशस्वी था। राजा के दो पुत्र थे, सूर्य और चंद्र । राजा को सूर्य के प्रति अगाध प्यार था । वह सूर्य को गुणवान् और पराक्रमी मानता था, चन्द्र को नहीं । राजा ने सूर्य को युवराज बनाया, चन्द्र को कोई सामान्य पद भी नहीं दिया। रात्रि के समय चन्द्र अपने कमरे में बैठा सोचता है, पिताजी ने आज सूर्य को युवराज पद दिया...और मुझे एक सैनिक भी नहीं बनाया.... | पिताजी ने पक्षपात किया । सूर्य के प्रति पिताजी का प्रगाढ़ राग है, मेरे प्रति द्वेष है । मेरा आज तिरस्कार किया गया....मुझे अब यहाँ नहीं रहना चाहिये । चला जाऊँ दूर देश में....कि जहाँ मुझे कोई पहचानता न हो । चन्द्र खड़ा हुआ । कमर पर तलवार बांध ली, थोड़े रूपये ले लिये और गुपचुप वह महल से निकल गया । उसने जयपुर छोड़ दिया....जयपुर-राज्य की सीमा से भी बाहर निकल गया । चलता ही रहा । 90
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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