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हो तब भी उबाला हुआ पानी पी सकते हैं । उससे हमें इतने जीवों को बचाने का लाभ मिलता है ।
जिज्ञासा : पानी उबालने से तो जीव मर जाते हैं । तो जीव हिंसा होने से दोष लगता है। तब ज्ञानी पुरुषों ने उबाला हुआ पानी पीने का विधान क्यों किया है ?
समाधान : पानी को उबालने से वे जीव मर जाते है, परंतु उबालने के पश्चात् बाद अमुक समय (3, 4 या 5 प्रहर) तक न तो उसमें नये जीव उत्पन्न होते हैं, न मरते हैं, और वह पानी पीने से नए उत्पन्न होने वाले जीवों की हिंसा से बच जाते हैं । अनावश्यक एवं अधिक मात्रा में हिंसा से बचने के लिए उबाला हुआ पानी पीने का विधान है । अल्प हानि एवं अधिक लाभ का इसमें गणित है । (स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उबाला हुआ पानी पीने का सतत प्रचार किया जाता है।) इस प्रकार आराधना एवं आरोग्य की दृष्टि से उबाला हुआ पानी पीना आवश्यक है । बिना उबाले हुए कच्चे पानी में तो पल पल में असंख्य जीवों की सतत उत्पत्ति जारी ही रहती है और वह कच्चा पानी पूरे दिन में जितनी बार आप पीते हो, उतनी बार जीव हिंसा का दोष लगता ही रहता है। जबकि कच्चे पानी को उबाला तब ही दोष लगा, बाद में लगने का प्रश्न ही नहीं रहता । अत: इतने जीवों की रक्षा का लाभ जानकर ही ज्ञानी भगवंतों ने उबाला हुआ पानी पीने की बात कही हैं।
मुंबई-अहमदाबाद जैसे शहरों में कई श्रावक ऐसे हैं कि जिनके घरों में कच्चे पानी का पनहारा (घडे रखने की जगह) ही नहीं है । घर के सभी सदस्य उबाला हुआ पानी ही पीते हैं । नवजात शिशु को भी जन्म से ही उबाला हुआ पानी पिलाया जाता है । मैं (लेखक श्री) भी स्कूल में पढता था, तब उबाला हुआ पानी साथ में लेकर जाता था ।
जापान में लोग पानी गर्म किया हुआ-उबाला हुआ पीते है । वहाँ कोई मोटे लोग टिखाई नहीं देते। जिज्ञासा : उबाला हुआ पानी पीने से शरीर में गर्मी नहीं होती क्या ?
समाधान : सर्वप्रथम बात यह है कि यह मार्ग बताने वाले केवलज्ञानी-सर्वई ऐसे जिनेश्वर भगवान है । उन्हें अपने ज्ञान में सब प्रत्यक्ष होता है, साथ ही भगवान दयालु-कृपालु-कृपानिधान है। अत: उबाला हुआ पानी पीने से शरीर में गर्मी होती तो भगवान कभी ऐसा गलत मार्ग नहीं बताते । यह तो अज्ञानी लोगों का मात्र भ्रम है, अत: आप ऐसी बात में भ्रमित न हो । शास्त्रों में एक रज्जा साध्वीजी का दृष्टांत आता है कि इन साध्वीजी ने आधुनिक लोगों की तरह बोल दिया कि गर्म पानी पीने से गर्मी होती है। अत: अन्य सभी साध्वियों ने भी उबाला हुआ पानी पीना छोड दिया, पंरतु एक छोटी साध्वी ने भगवान की बात पर दृढ श्रद्धा रखी और उन्होंने रज्जा साध्वी का कथन न मानते हुए उबाला हुआ पानी पीना जारी रखा । स्वयं अन्य साध्वियों को न समझा सकने से, पश्चाताप करते करते उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई, परंतु जो मुख्य साध्वीजी (रज्जा) थी, जिन्होंने मिथ्या (गलत) प्ररुपणा की कि उबाला हुआ पानी पीने से गर्मी होती है, उनका भव भ्रमण बढ गया । छोटी साध्वी के उपदेश से अन्य साध्वियों ने उबाला हुआ पानी पीना पुन: प्रारंभ कर दिया ।
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