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________________ नहीं, परंतु उसमें लाईट के कारण उडते हुए छोटे छोटे जीव जंतु उत्पन्न होते है और दिखाई न दें ऐसे गंदे स्थान में बसे हुए अनेक प्रकार के वायरस, बेक्टेरिया, एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्व फफूंद और कैंसर उत्पन्न करने वाले पदार्थ जब आप जंकफूड खाते हो, तब आपके पेट में प्रवेश कर स्थायी हो जाते हैं । यह तथ्य जानते हो न ? तो बच्चों ! इस प्रकार समझकर पीझा, बर्गर, मसाला ढोसा, सेंडविच, ग्रीन सेंडविच, दाबेली, पफ, चाइनीज, होट डॉग, मन्चुरीयन, पाऊभाजी, स्लाईस, हक्का नूडल्स, वडा पाऊ, डोमीनोस् पीझा आदि डिशीज् (Dishes = Disease = Decease = मृत्यु ) जैसी अंडबंड खाने की वस्तुएँ पेट में डालकर शरीर को हानि न पहुँचाएँ, क्योंकि आकर्षक लेबल और सुंदर पेकिंग में बिकते सभी खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं होते। इसके अलावा कंदमूल, बासी, द्विदल आदि खाने से नरकादि में दुःख सहन करने पड़ते है वह अलग! अन्य भी अभक्ष्य पदार्थ जैसे अंडे - माँस-2‍ - शराब आदि पर विचारणा, व्यसन के विवेचन में आगे की जाएगी । 3. मन चाहे उतनी बार खाना नहीं : अपने जैन शास्त्रों में लिखा है कि साधु और श्रावक को शक्ति हो तो कम से कम प्रतिदिन एक ही बार भोजन अर्थात् एकासना करना चाहिए और पाँच तिथियों (दो अष्टमी - दो चतुर्दशी व शुक्ल पक्ष की पंचमी) में यथाशक्ति उपवास अथवा आयंबिल करना चाहिए । एकासना करने की शक्ति न हो तो बियासना, वह भी न हो सके तो, पूर्व में बताए अनुसार प्रतिदिन नवकारशी पच्चक्खाण तो अवश्य करना चाहिए । नवकारशी का अर्थ यह नहीं है, कि आप चाहे जितनी बार चलते-फिरते खाओं परंतु तीन बार एक स्थान पर बैठकर भोजन करना चाहिए। हम पशु नहीं है कि उनकी तरह दिनभर में जो भी खाने को मिले उसे चरते रहें, परंतु हम, विवेकशील मानव हैं, तो समय के अनुसार खाने का रखना चाहिए । दृष्टांत : राजस्थान के एक छोटे से गाँव में एक वृद्ध बुढिया वंदन करने के लिए आई और उन्होंने एकासणे का पच्चक्खाण मांगा। मैंने पच्चक्खाण दिया। बात ही बात में पता चला कि चौदह वर्षों से वे एकासना कर रही है और साथ ही प्रतिमाह छः आयंबिल (दो अष्टमी, दो चतुर्दशी, शुक्ल पक्ष की पंचमी और बैठते महिने की एकम) करती हैं। माजी का शरीर देखा हो कमर से झुक चुकी थी, लकडी के सहारे चलती थी। आयु उनकी 84 वर्ष की थी, फिर भी अभी तक एकासने सतत जारी हैं। ऐसी उनकी दृढता एवं श्रद्धा है, तो अपने अंदर ऐसी दृढता नहीं आ सकती क्या ? F. उबाला हुआ पानी पीएँ तो इस प्रकार भोजन संबंधी विचारणा में भोजन किस प्रकार किया जाए आदि बातें समझाने के बाद पानी कैसा पीएँ ? यह भी साथ में ही बता देते हैं । पानी उबला हुआ पीना चाहिए, क्योंकि कच्चे पानी में असंख्य जीव होने से और प्रतिक्षण वे जीव उसमें पैदा होते हैं और मरते है और वह पानी पीने से उन जीवों की हिंसा का दोष लगता है। उस दोष से बचने के लिए उबाला हुआ पानी पीना चाहिए । एकासना - बियासना न हो, केवल नवकारशी पच्चक्खाण 47
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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