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5. नवपद प्रश्न: नवकार मंत्र के पाँच पद से पाँच परमेष्ठियों को वंदन होता है । अब छठे पद में किसे नमस्कार किया जाता है ? उत्तर : जैन शासन में तत्त्वत्रयी और रत्नत्रयी का बहुत महत्व है । तत्वत्रयी में 1. सुदेव 2. सुगुरु 3. सुधर्म का समावेश होता है । रत्नत्रयी में 1. सम्यग्दर्शन 2. सम्यग्ज्ञान 3. सम्यग्चारित्र का समावेश होता है । नवकार के प्रथम दो पदों में अरिहंत और सिद्ध भगवंतों को नमस्कार किया गया है । जो सुदेव कहलाते है। तीसरे, चौथे और पाँचमें पद में आचार्य, उपाध्याय और साधु भगवंत को नमस्कार किया गया है जो सुगुरु कहलाते है । छठे पद में सुधर्म को नमस्कार किया गया है । प्रश्न: सुधर्म को नमस्कार करने की बात क्यों कही गई है ? उत्तर: ललित विस्तरा ग्रंथ में पूज्यपाद सूरि पुरन्दर, 1444 ग्रंथों के रचयिता हरिभद्रसूरीजी बताते है की धर्मं प्रति मूलभूत वन्दना अर्थात् धर्म रुपी वृक्ष का मूल है वंदना याने नमस्कार । इस विश्व में सर्वोत्कृष्ट धर्म यदि कोई हो तो वह है विनय धर्म याने नमस्कार, प्रणाम वंदना । जिसके जीवन में नमस्कार रुप धर्म आ गया हो उसके जीवन में अन्य सभी प्रकारके धर्म सहज रुप से आने लगते है। वहीं जिसके जीवन में नमस्कार धर्म नहीं आता उसके जीवन में आए हुए अन्य सभी धर्म निकल जाते है।
___ हमारी आत्मा के विकास में कोई दोष बाधक है । तो वह है अहंकार । अहंकार सभी दोषों का राजा है। अहंकार अपने साथ अनेक दोषों को लेकर आता है। जिसके जीवन में अहंकार होता है उसके जीवन में क्रोध, ईर्ष्या, निंदा आदि दोष जरुर होंगे । और ये दोष उसकी आत्मा को पतन की ओर ले जाते है।
आदिनाथ प्रभु के पुत्र बाहुबलीजी जो एक वर्ष तक वृक्ष की तरह खडे रहे । ध्यान में लीन रहे । फिर भी केवलज्ञान नहीं मिला । उन्होंने यह विचार किया कि मैं बड़ा हूँ और छोटे भाईयों को वंदन कैसे करूं ? यही अभिमान उनके केवलज्ञान को रोक रहा था । जब उन्होंने अहंकार का त्याग कर छोटे भाईयों को वंदन करने का निश्चय किया और जैसे ही कदम उठाया वैसे ही उन्हें तत्काल केवलज्ञान हो गया । कल्पना कीजिए कि एक छोटे से अहंकार में कितनी शक्ति होगी जिसने केवलज्ञान को प्रगट होने से रोक रखा।
__ अहंकार, हमारे किसी भी धर्म को सच्चा धर्म बनने नहीं देता । यदि हमें वास्तविक धर्म करना है तो सर्वप्रथम अहंकार का त्याग कर देना चाहिए । यह मैंने किया, मैने इतना दान किया, मैंने इतना तप किया, मैंने इतना पुण्य-सुकृत किया आदि में छिपा अंहकार हमारे तप-जप और दान पर पानी फेर देता
इस अहंकार को नाश करता है नमस्कार भाव । जो नमता है उसमें अहंकार टिक नहीं सकता। अत: अहंकार को दूर करने के लिए पंच परमेष्ठियों को बार बार नमस्कार करना चाहिए । यदि आत्मा को परमात्मा बनाने में अहंकार बाधक रुप दोष है तो वह भयंकर दोष माना जाएगा । इस भयंकर दोष को दूर
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