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करने में सहायक ऐसा नमस्कार महान धर्म गिना जाएगा । ऐसे महान नमस्कार धर्म की बात नवकार के छट्टे पद में आती है। प्रश्न: नमस्कार करने से क्या लाभ होता है ? उत्तर: पंच परमेष्ठेि भगवंतों को नमस्कार करने से सभी पापों का नाश हो जाता है । जिस तरह पाप की क्रिया पाप है उसो तरह पाप की क्रिया कराने वाले राग-द्वेष आदि दुर्गुण भी पाप है । मनपसंद वस्तुओं के प्रति राग करना यह पाप है । नापंसद वस्तुओं के प्रति द्वेष भाव या गुस्सा करना वह भी पाप है । इस संसार में सारी समस्याएँ राग-द्वेष के कारण है । यदि राग-द्वेष पूर्णरुप से मिट जाएं तो कहीं भी किसी को भी किसी प्रकार का दु:ख नही रहेगा। सभी वास्तविक अर्थ में सुखी बन जाएंगे।
यह राग और द्वेष हमें भी सताता है । पंच परमेष्ठि भगवंतों को किया जाने वाला नमस्कार रागद्वेष को मिटाने का सामर्थ्य रखता है । अत: राग-द्वेष के जंजाल से मुक्त बनने के लिए हमें रोज भावपूर्वक पंच परमेष्ठियों को नमस्कार करना चाहिए।
पंच परमेष्ठियों को नमस्कार करने से पुण्यानुबंधी पुण्य का बंध होता है । वह पुण्य जब उदय में आता है तो सुख की भरपूर सामग्री तो मिलती ही है लेकिन उस सुख को पचाने की ताकत भी मिलती है । चाहे जैसा सुख हो उसमें आत्मा पागल (लीन) न बने बल्कि विरक्त रहे-यह सामर्थ्य भी यह पुण्य देता है । अहंकारी बनने के बजाए नम्र बनाता है यह पुण्य ।
नमस्क र करने से हमारे पाप और दोष दूर होते है । इससे आत्मा शुद्ध बनती है । और आत्मा मोक्ष की तरफ प्रयाण करती है । नमस्कार धर्म से भावित भक्त के जीवन में यदि पूर्वभव के कोई पापकर्म उदय में आ जाए तो भी वह दुःखों के बीच हताश नहीं होगा । समता और समाधि से वह दुःखों को सहन करने की शक्ति जगाएगा।
पंच परमेष्ठि भगवंत को यदि व्यक्ति सच्चे हृदय से नमस्कार करता है तो वह व्यक्ति स्वयं परमेष्ठि बन सकता है । हमें परमेष्ठि बनाने वाले इस महामंत्र को प्रथम मंगल कहा गया है। प्रश्न: मंगल याने क्या ? उत्तर: जिसके द्वारा हमारी मुश्किले, तकलीफें और आपत्तियां दूर हो, हमें सुख-सुविधा, शांति, समाधि, सामग्री, आदि अनुकूलता मिले, उसे मंगल कहते है।
किसी घर या दुकान के उद्घाटन के अवसर पर गुड-धाणा वितरित किया जाता है । अच्छे काम के लिए जब घर में से कोई जाता है तब उसे दही या गुड खिलाया जाता है । ये सब मंगल कहलाते है । कोई विशेष काम के लिए जब बाहर जाते हो और सामने से कोई कुँवारी युवती सिर पर मटका लिए आती हो तो उसे शगुन या मंगल कहा जाता है । ये सब द्रव्य मंगल है । इससे अनेक गुना प्रभाव नवकारमंत्र में है। अमंगल कार्यों को भी मंगलकार्यों में परिवर्तित करने का सामर्थ्य नवकार महामंत्र में है । वह भाव मंगल है। सभी प्रकार के मंगलों में सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ कोई मंगल हो तो वह है नवकार महामंत्र । क्योंकि इस जगत के मंगल कुछ दु:खों को कुछ समय के लिए अटका सकते है लेकिन कायम के लिए नहीं ।
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