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जय 5
मेरे मन मधुकर के मोहन, तुम हो विमल सदल अरविंदा नयन चके र विलास करत है, देखत तुम मुख पूनमचंदा दूर जावे प्रभु! तुम दरिशन से, दु:ख दोहग दारिद्र अघ-दंदा 'वाचकजस' कहे सहज फलत है, जे बोले तुम गुण के वृंदा
जय 6
E. स्तुति
अ) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति राजुल वर नारी, रुपथी रति हारी, तेहना परिहारी, बालथी ब्रह्मचारी
पशुआं उगारी, हुआ चारित्रधारी, केवलश्री सारी, पामीआ घाति वारी ।। 1 ।।
आ) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति शंखेश्वर पा सजी पूजीए, नरभवनो लाहो लीजिए, मनवांछित रण सुरतरु, जय वामा सुत अलवेसरु दोया राता जिनवर अतिभला, दोय धोला जिनवर गुणनीला, दोय नीला तोय शामल कह्या, सोले जिन कंचनवर्ण लह्या
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आगम ते जिनवर भाखियो, गणधर ते हैडे राखीयो, तेहनो रस लणे चाखीओ, ते हुओ शिव सुख साखीओ
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धरणीधर रा प पद्मावती, प्रभु पार्श्वतणा गुण गावती, सहु संघनां संकट चूरती, नयविमलनां वांछित पूरती
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