________________
।। 1 ।।
।। 2 ।।
।। 3 ||
|| 4 ||
|| 5 ||
D. स्तवन
अ) श्री नेमिनाथ जिन स्तवन निरख्यो नेमिजिणंद ने अरिहंताजी राजीमती कर्यो त्याग भगवंताजी, ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो, अरि... अनुक्रमे थया वीतराग रे भग... चामर चक्र सिंहासन, अरि... पादपीठ संयुत रे भग... छत्र चाले आकाश मां, अरि... देवदुंदुभि वर युत रे भग... सहस जोयण ध्वज शोभतो, अरि... प्रभु आगल चालंत रे भग... कनक कमल नव उपरे,अरि... विचरे पाय ठवंत रे भग... चार मुखे दीये देशना, अरि... त्रण गढ झाकझमाल रे भग... केश रोम श्मश्रु नखा, अरि... वाधे नही कोई काल रे भग... कांटा पण उंधा होय, अरि... पंच विषय अनुकूल रे भग... षट् ऋतु समकाले फले, अरि... वायु नहि प्रतिकूल रे भग... पाणी सुगंध सुर कुसुम नी, अरि... वृष्टि होये सुरसाल रे भग... पंखी दीये सुप्रदक्षिणा, अरि... वृक्ष नमे असराल रे भग... जिन उत्तम पद पद्मनी, अरि... सेवा करे सुर कोडी रे, भग.... चार निकाय ना जघन्य थी, अरि...चैत्यवृक्ष तेम जोडी रे भग...
आ) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन जय! जय! जय! जय! पास जिणंदा अंतरिक्ष प्रभु! त्रिभुवन तारण,भविक कमल उल्लास दिणंदा तेरे चरण शरण में कीनो, तुम बिन कुन तोडे भव फंदा परम पुरूष परमारथ दर्शी, तु दीये भविक कु परमानंदा तु नायक तु शिवसुखदायक, तु हितचिंतक, तु सुखकंदा तु जनरंजन तु भवभंजन, तु केवल-कमला-गोविंदा । कोडि देव मिलके कर न सके, एक अंगुष्ठ रूप प्रतिछंदा ऐसो अद्भुत रूप तिहारो, मानो बरसंत अमृत के बुंदा
||
||
जय 1
जय 2
जय 3
जय 4
10