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________________ आव्यो ।।2।। आव्यो ।।3।। आत्मगुणनो भंडार, तारा महिमानो नहीं पार देख्यो सुंदर देदार, करो पार पार पार... तारी मूर्ति मनोहार, हरे मनना विकार मारा हैयानो हार, वंदु वार वार वार... आव्यो देहरासर मोझार, कर्यो जिनवर जुहार प्रभु चरण आधार, खरो सार सार सार... आत्म कमल सुधार, तारी लब्धि छे अपार एनी खुबी नो नहिं पार, विनंति धार धार धार... आव्यो ||4|| आव्यो ।।5।। ।। 1 ।। || 2 || = । ।। 3 ।। C.चैत्यवंदन अ) श्री नेमिनाथ जिन चैत्यवंदन नेमिनाथ बार्वसमा, शिवादेवी माय, समुद्रविजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय दश धनुषनी देहडी, आयु वरस हजार, शंख लंछनधर स्वामीजी, तजी राजुल नार. शौरीपुरी नयरी भली अ, ब्रह्मचारी भगवान, जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अविचल ठाण. आ) श्री पार्श्वनाथ जिन चैत्यवंदन ॐ नम: पाश्नाथाय, विश्व चिन्तामणीयते, ह्रीं धरणेन्द्र चैरुट्या -पद्मादेवी युतायते शान्ति तुष्टि महापुष्टि, धृति कीर्ति विधायिने, ॐ ह्रीं द्विड व्याल वैताल, सर्वाधि व्याधि नाशिने जयाजिताख्य विजयाख्या पराजितयान्वित:, दिशां पालैग्रह क्षि, विद्यादेवी भिरन्वितः ॐ असिआउसाय नमस्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् , चतु: षष्टि सुरेन्द्रास्ते, भासन्ते छत्रचामरैः श्री शंखेश्वर मंडण ! पार्श्व जिन प्रणत कल्पतरु कल्प ! चूरय दुष्ट व्रातं, पूरय मे वांछितं नाथ ! || 1 || ।। 2 ।। ।। 3 ।। ||4|| || 5 ||
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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