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________________ 2. काव्य संग्रह ।। 1 ।। ।। 2 ।। ।। 3 || A. प्रार्थना मैत्री भावनुं पवित्र झरणुं मुज हैयामां वह्या करे शुभ थाओ आ सकल विश्वनुं एवी भावना नित्य रहे गुण थी भरेला गुणीजन देखी हैयुं मारू नृत्य करे ए संतोना चरण कमलमां मुज जीवननु अर्घ्य रहे दीन हीन ने धर्म विहोणा देखी दिलमा दर्द रहे। करूणा भीनी आंखोंमाथी अश्रुनो शुभ स्रोत वहे मार्ग भुलेला जीवन पथिकने मार्ग चींधवा उभो रहु करे उपेक्षा ए मारगनी तो ये समता चित्त धरू वीर प्रभुनी धर्म भावना हैये सहु मानव लावे वेरझेरना ताप शमावी, मंगल गीतो ए गावे B. प्रभु स्तुतियाँ राग द्वेष के आप विजेता, हमको विजयी बनाना, भवसागर को तैर चुके हो, हमको पार लगाना, केवलज्ञानी आप बने हो, हमको ज्ञानी बनाना, सब कर्मों से मुक्त बने हो, हमको मुक्ति दिलाना ।। आव्यो शरणे तमारे जिनवर करजो, आश पूरी अमारी नाव्यो भवपार मारो तुम विण जगमां, सार ले कोण मारी? गायो जिनराज आजे हर्ष अधिकथी, परम आनंदकारी, पायो तुम दर्श नासे भव भय भ्रमणा, नाथ सर्वे अमारी ।। शत कोटि-कोटि वार वंदन नाथ मारा हे तने हे तरणतारण नाथ तु स्वीकार मारा नमन ने । हे नाथ शु जादु भर्यु अरिहंत शब्दोच्चार मा आफत बधी आशीष बनी तुज नाम लेता वार मा ।। आव्यो दादा ने दरबार, करो भवोदधि पार मारो तुं छे आधार, मोहे तार तार तार... आव्य ||1||
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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