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________________ देवपाल को हाथी पर बिठाकर राजमहल में ले जाकर राजा बनाया गया। देवपाल राजा राज्य व्यवस्था चलाने लगा किंतु उसी गाँव में नौकर और ढोरों को चराने वाला होने के कारण उसे कोई महत्त्व नहीं देता था और उसकी कोई आज्ञा नहीं मानता था। स्वयं के सेठ को मंत्री का पद देने के लिए बुलाया तो वह भी नहीं आया । कुछ अधीनस्थ राजाओं ने उसका राज्य लेने के लिए आक्रमण किया। तब उसने देवी को याद किया, देवी प्रगट हुयी । देवपाल ने देवी को कहा कि "मुझे राज्य तो दिलवाया, किंतु यह मेरे काम की वस्तु नहीं है। उसके बजाय तो प्रभु की भक्ति तथा नौकर का काम अच्छा था। अतः यह राज्य मुझे नहीं चाहिए ।'' तब देवी ने कहा कि "यह कोई राज्य छोडने का कारण नहीं है। तो देवपाल ने कहा कि, "जहाँ मेरी आज्ञा कोई नहीं मानते हो, तो वहाँ मैं राज्य किस प्रकार चलाऊँ ?" देवी ने कहा कि " उसका उपाय मैं बताती हूँ। तू किसी कुम्हार से एक मिट्टी का बडा हाथी बनवाना । लोगों के झुंड हाथी को देखने के लिए आएंगे । उन सब के सामने तू हाथी पर सवारी करना। हाथी तुरंत चलने लगेगा और तेरी इच्छा अनुसार गति करेगा । ऐसा चमत्कार देखकर लोग तेरे चरण छुएंगे तथा तेरे कहने के अनुसार कार्य करेंगे, किंतु तू भगवान की पूजा करना छोडना मत ।" के I देवपाल देवी की सूचना के अनुसार कार्य करवाकर मिट्टी के हाथी पर बैठने लगा, तब दूसरे लोग उसको देखकर हँसने लगे और सोचने लगे कि आखिर तो यह रबारी जाति का है। राज्य दरबार में इतने सारे जीवित हाथी है, फिर भी यह मिट्टी के हाथी पर बैठा है। किंतु देवपाल तो देवी के कहने के अनुसार, मिट्टी के हाथी पर चढकर "चल हाथी चल” बोला कि हाथी चलने लगा तथा देवपाल राजा बाहर आदिनाथ भगवान की प्रतिमा का दर्शन करने के लिए गया। उसने पंचांग प्रणिपात से भगवान को नमस्कार किया। वह देखकर लोग, प्रधान मंडल सभी विस्मित तथा भयभीत होकर राजा की आज्ञा मानने लगे। शत्रु राजा को भी ये सभी समाचार मिलें, वे भी डरकर उसकी शरण में आए “जहाँ चमत्कार वहाँ नमस्कार ।" "छोटी उम्र के इस राजा कि महान कीर्ति हुई । अपने सेठ को देवपाल राजा ने मंत्री के पद पर स्थापित किया। उसकी सलाह के अनुसार राजा राज्य पालन में तत्पर तथा धर्म ध्यान में आदर वाले हुए। उसने जिन शासन की अच्छी प्रभावना की । अनेक आत्माओं को धर्म के अभिमुख बनाए । पूर्व राजा की कन्या के साथ उनका विवाह हुआ । सुख से 104
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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