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11. क्षेत्र :- (1) जिसमें पदार्थ रहे = रखने वाला।
(आकाशास्तिकाय=आकाश) 12. क्षेत्री :- (5) जो क्षेत्र (आकाश) में रहे रहने वाला।
(जीवास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल) . 13. सक्रिय :-- (2) जो गति आदि क्रिया करने में समर्थ हो।
(जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय) 14. अक्रिय :-- (4) जो गति आदि क्रिया करने में असमर्थ हो।
(धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल) 15. नित्य :- (4) जिसका परिवर्तन न हो, अर्थात् सदा एक जैसा रहे। (धर्मास्तिकाय,
अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल) 16. अनित्य :-- (2) जिसका परिवर्तन हो अर्थात् एक अवस्था में सदा काल के लिए न रहे।
(जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय) 17. कारण :- (5) जो द्रव्य अन्य द्रव्य के कार्य में सहायक (निमित्त) बने।
(धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल) 18. अकारण :- (1) जो स्वयं कर्ता होने से अन्य द्रव्य के कार्य में उपकार नहीं होता।
(जीवास्तिकाय) 19. कर्ता :- (1) जो कार्य करने में स्वतंत्र हो अथवा जो अन्य द्रव्य का उपभोक्ता हो। __(जीवास्तिकाय (=जीव)) 20. अकर्ता :- (1) जो न तो कार्य करने में स्वतंत्र हो और न किसी द्रव्य का उपभोग करता हो।
(धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल) 21. सर्वगत :- (1) जो सर्वव्यापी (लोकालोक व्यापी) हो।
(आकाशास्तिकाय) 22. देशगत :- (5) जा देश लोक में ही है। अलोक में नहीं है।
(धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल) 23. परस्पर अप्रवेशी(6) एक दूसरे द्रव्य में रूपान्तर होना, उसको 'प्रवेश' कहते हैं। ऐसा न
होना वह 'अप्रवेश' है। सभी द्रव्य लोक में एक दूसरे के साथ रहते हुए भी वे सब अपने स्वरूप में अवस्थित रहते हैं। एक दूसरे के स्वरूप को धारण नहीं करते। इसलिये छ: द्रव्य परस्पर अप्रवेशी हैं।
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