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________________ प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के छ:विभाग होते हैं। उनके नाम और माप निम्न प्रकार से हैं: । क्रम. छ: विभाग के नाम 1. सुषमा-सुषमा |सुषमा 3. |सुषमा-दुःषमा दुषमा-सुषमा अवसर्पिणी के छ: विभाग के माप | उत्सर्पिणी के छ: विभाग के माप छ: विभाग के नाम 4 कोटाकोटी सागरोपम | 21 हजार वर्ष 1.दुषमा-दुषमा 13 कोटाकोटी सागरोपम | 21 हजार वर्ष | 2. दुषमा 12 कोटाकोटी सागरोपम | 42000 वर्ष न्यून | 3. दुषमा-सुषमा | 42000 वर्ष न्यून | 1 कोटाकोटी सागरोपम 1 कोटाकोटी सागरोपम | 2 कोटाकोटी सागरोपम | 4. सुषमा-दुषमा 21 हजार वर्ष 3 कोटाकोटी सागरोपम 5.सुषमा 21 हजार वर्ष 14 कोटाकोटी सागरोपम 6. सुषमा-सुषमा । दुःषमा | 6. | दुषमा-दुषमा छः द्रव्यों की 23 द्वारों से विचारणा 1. परिणामी :- (2) जिसका परिवर्तन हो अथवा जो अन्य अवस्था को प्राप्त करे, उसे परिणामी कहते हैं। (जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय) जीव :-चार गति में फिरना, समयानुसार बाल, युवान, ___ वृद्ध होना ये जीव के परिणाम हैं। पुद्गल :- दूध से दही, छाछ आदि पुद्गल का परिणाम है। 2. अपरिणामी :- (4) जिसमें परिवर्तन न हो। (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल) 3. जीव :- (1) जिसमें चेतना हो। (जीवास्तिकाय) 4. अजीव :- (5) जिसमें चेतना न हो। (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल) 5. मूर्त :- रूपी = पुद्गल 6. अमूर्त :- अरूपी = आकाश; जीव 7. सप्रदेशी :- (5) जिसमें प्रदेश हो। ___ (जीवास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय 8. अप्रदेशी :- (1) जिसमें प्रदेश न हो। (काल) 9. एक :- (3) जो संख्या में एक है। (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय) 10. अनेक :- (3) जो संख्या में अनेक अनन्त है। (जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल) (88
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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