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(5) काल:
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गुण :- वर्तना। जो परिवर्तन करता है। नये को पुराना बनाता है। जैसे आयुष्य का मान और छोटे-बड़े का व्यवहार काल से होता है। नया-पुराना, शीघ्र-धीमा आदि भी काल के कारण से ही कहा जाता है। हलन-चलन, खान-पान आदि सभी क्रियाएँ काल की सहायता होने पर ही संभवित हैं बीज में से वृक्षोत्पत्ति, बालक में से युवा अथवा वृद्धा अवस्था भी काल की सहायता से ही होती है।
पुदगल के लक्षण :
10 प्रकार : 1. शब्द : आवाज, ध्वनि, नाद यह सब पुद्गल के प्रकार हैं। 2. अंधकार : यह भी एक पौद्गलिक पदार्थ है, जो वस्तु को देखने में बाधक बनता है। 3. उद्योत : शीत पदार्थ के शीत प्रकाश को उद्योत कहते हैं। 4. प्रभा : सूर्य-चन्द्र के प्रकाश से जो दूसरा किरण रहित उपप्रकाश पड़े। उसे प्रभा कहते हैं। 5. छाया : दर्पण और प्रकाश में प्रतिबिम्ब पड़े। 6. आतप (धूप) : शीत पदार्थ का उष्ण प्रकाश। 7. वर्ण : श्वेत, रक्त, पीला, नीला, काला ये मूल वर्ण हैं। 8. गंध : सुरभि (सुगन्ध), दुरभि (दुर्गन्ध) प्रसिद्ध है। 9. रस : तीखा, कड़वा, कसैला, खट्टा, मीठा ये मूल रस हैं। 10. स्पर्श : शीत, उष्ण, स्निग्ध, रुक्ष, गुरु, लघु, मृदु, कर्कश ये आठ स्पर्श हैं। शब्द के तीन प्रकार : 1. सचित्त : जो जीव के मुख से निकले। 2. अचित्त : पाषाण आदि पदार्थों के परस्पर टकराने से जो ध्वनि होती है।
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