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त्रस - स्थावर दशक
(1) त्रस नामकर्म : जिससे धूप से छाँह (छाया) में स्वेच्छया हिलने ... चलने की गति, गमनागमन करने की शक्ति आदि प्राप्त हो। (1) स्थावर नामकर्म: जो जीव कही हिलने चलने की गति स्वेच्छया करने में असमर्थ हो उनका स्थावर नामकर्म का उदय होता है, जैसे एकेन्द्रिय जीव-समूहादि |
(2) बादर नामकर्म: जिसके उदय से एक, अनेक अथवा असंख्य शरीर परस्पर इन्द्रियग्राह्य बनते हैं । (2) सूक्ष्म नामकर्म : जो बादर नहीं अर्थात् बादर से विपरीत हैं, वे सूक्ष्म
(3) पर्याप्त नामकर्म: जिसके उदय से स्वयोग्य पर्याप्ति परिपूर्ण कर सकें। (3) अपर्याप्त नामकर्म: जिसके उदय से स्वयोग्य पर्याप्ति पूर्ण न कर सकें ।
पर्याप्ति के छह भेद हैं: आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोश्वास, भाषा और मन पर्याप्ति
(4) प्रत्येक नामकर्म: जिसके उदय से स्वतंत्र शरीर की प्राप्ति हो । (4) साधारण नामकर्म : अनंत जीवों को एक ही शरीर की प्राप्ति ।
(5) स्थिर नामकर्म: जिसके उदय से शरीर की हड्डियाँ, दाँतादि स्थिर प्राप्त होना ( 5 ) अस्थिर नामकर्म : जीभ आदि अस्थिर अवयव प्राप्त होना वह अस्थिर नामकर्म कहलाता है,
(6) शुभनामकर्म : जिससे नाभि के ऊपर के सभी अवयव शुभ-सुन्दर प्राप्त होते हैं (6) अशुभ नामकर्मः जिसके उदय से नाभि के नीचले भाग में अवयव अशुभ प्राप्त होते हैं।
(7) सौभाग्य नामकर्म : जिसके उदय से कोई जीव बिना कोई उपकार किये भी सब को प्रिय लगता है। (7) दुर्भाग्य नामकर्म : जिससे उपकारी जीव भी लोगों को अप्रिय लगता है।
(8) सुस्वर नामकर्म : जिसके उदय से सुरीला कंठ... स्वर प्राप्त करना जैसे कोयल ( 8 ) दुस्वरनामकर्म : जिसके उदय से विपरीत स्वर प्राप्त होता है, जैसे कौआ ।
(9) आदेय नामकर्म: जिसके उदय से किसी जीव का वचन युक्ति एवम् आडम्बर विहीन होने के बावजूद भी ग्राह्य माना जाता है। अथवा प्रथम दृष्टि में ही लोग मान-सन्मान प्रदान करते हैं, (9) अनादेय नामकर्म: जिसके उदय से वचन अग्राह्य एवम् अनादरणीय होता है।
( 10 ) यश (कीर्ति) नामकर्म: जिस कर्म के उदय से लोगों की प्रशंसापात्र बनने हैं, ( 10 ) अपयश (अपकीर्ति) नामकर्म: यश-कीर्ति से विपरीत अपयश एवम् अपकीर्ति । इस तरह परस्पर विरोधी दस युगलों को त्रस दशक एवम् स्थावर के दशक की संज्ञा दी गयी है।
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