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________________ (6) हुंडक = सभी अवयव लक्षण प्रमाण विहीन हों। इस तरह संस्थान के कुल 6 भेद है। IX. वर्ण नामकर्म : जिसके उदय से वर्ण, गंध, रस एवम् स्पर्श अच्छे-बुरे, शुभ-अशुभ अथवा सुन्दर-कुरूप होते हैं। वर्ण के कुल 20 भेद हैं, जिसमें से वर्ण नामकर्म के पाँच प्रकार - (1) कृष्ण (2) नील (3) रक्त (4) पीत (5) श्वेत। गंध नामकर्म : इसके दो प्रकार है - (1) सुरभि (2) दुरभि। रस नामकर्म : इसके पाँच प्रकार : (1) तिक्त (कडवा) (2) कटु (चटपटा, तीखा,उग्र) (3) कषाय (तुवर-बहेडा कसैलापन) (4) आम्ल = खट्टा (5) मधुर (नमक का इसमे समावेश)। स्पर्श नामकर्म इसके आठ प्रकार है: (1) कर्कश (2) मृदु (3) गुरू (4) लघु (5) शीत (6) उष्ण (7) स्निग्ध (8) रूक्षा x. आनुपूर्वी : भवांतर में विग्रहगति से भ्रमण करनेवाले जीव को बैल के नाथ की तरह नथना। इसके कुल चार भेद है : (1) नरकानुपूर्वी (2) तिर्यंचानुपूर्वी (3) मनुष्यानुपूर्वी (4) देवानुपूर्वी। XI. विहायोगति नामकर्म : विहायोगति अर्थात् खगति = चाल। इसके दो भेद है : (1) शुभ खगति : गज, वृषभ, हंसादि की चाल (2) अशुभ खगति : ऊँट, गद्धे की तरह चाल। प्रत्येक प्रकृति : इसके कुल आठ भेद है: (1) अगुरू लघु नामकर्म : इसके उदय से शरीर, ना इतना गुरू (भारी) अथवा ना लघु (हलका), बल्कि अगुरूलघु प्राप्त होता है। (2) उपघात नामकर्म : इसके उदय से स्वयं के अवयव से ही हनन होता हैं। ये अवयव: छोटी जीभ, छट्ठी अंगुली आदि। (3) पराघात नामकर्म : इसके उदय से जीव को ऐसी मुखमुद्रा प्राप्त होती है कि वह अपनी ओजस्विता से अन्य जीव को आच्छादित कर देता है। (4) श्वासोश्वास नामकर्म : इससे श्वासोच्छ्वास की लब्धि प्राप्त होती है। (5) आतप नामकर्म : ऐसे शरीर की प्राप्ति होती है कि जो स्वयं शीत होते हुए भी अन्य जीव को उष्णता प्रदान करता है, जैसे सूर्य विमान के रत्नों से युक्त शरीर । (6) उद्योत नामकर्म: जिसके उदय से शरीर शीतलता प्रदान करता है, जैसे उत्तरवैक्रिय शरीर, चंद्रादि रत्न, औषधि आदि का शरीर। (7) निर्माण नामकर्म : विश्वकर्मा की भांति शरीर के निश्चित स्थान पर अंगोपांग को बिठानेवाला (8) जिन नामकर्म : जिसके उदय से केवलज्ञान की अवस्था में अष्ट महाप्रातिहार्यादि अतिशयों से युक्त और सुरासुर मानव आदि से पूज्य बन कर धर्मशासन प्रवर्तित करने की शक्ति की प्राप्ति हो। 179
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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