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एक बार जंगल में भटकते-भटकते महाज्ञानी गुरुमहाराज का योग हुआ। जिन्हे अपना दु:ख जीवन वृतांत कहा। ज्ञानी गुरुमहात्मा ने ज्ञानसे उसके पूर्वभवों को देखा और सारी बातें बताई। देवद्रव्य की बकाई राशी नहीं अदा करने का यह फल है यह समझने के पश्चात निष्पुण्यक ने गुरु महाराज से देवद्रव्य के भक्षण का प्रायश्चित मांगा। गुरुभगवंत ने अधिक देवद्रव्य भरपाई-रक्षण और वृद्धि इत्यादी के द्वारा दुष्कर्म नाश होने का समझाया।
तभी निष्पुण्यक नियम करता है कि.....
एक हजार गुनी देवद्रव्य की बकाया राशी जब तक जमा न करवाउं तब तक एक जोड वस्त्र और रोज आहार से ज्यादा कुछ भी द्रव्य अपने पास नहीं रखूंगा। धीरे-धीरे बकाया देवद्रव्यकी राशी भरपाई करके अऋणी हुआ और अपने स्वद्रव्य से भव्य जिनालय बनवाकर अखंड जिनभक्ति करते-करते तीर्थंकर नाम कर्म की उपार्जना करके दीक्षा लेकर संयम की अपूर्व आराधना करते हुए देवलोक में उत्पन्न हुआ और उसके पश्चात महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर बनकर सिद्ध गति प्राप्त की।
देवद्रव्य क्या है ? उसमें कौनसे द्रव्यों का समावेश होता है ?
* परमात्मा को समर्पण किया हुआ द्रव्य : देवद्रव्य
* भंडार में रखा हुआ द्रव्य : देवद्रव्य
* अष्टप्रकारी जिनपूजा के चढावें / बोली का द्रव्य : देवद्रव्य
* अंजनशलाका, प्रतिष्ठा के चढावे का द्रव्य : देवद्रव्य
* परमात्मा की रथयात्रा के सभी चढावें / बोली का द्रव्य : देवद्रव्य
* संघमाला, उपद्यान की माला का द्रव्य : देवद्रव्य
* महापूजा -महाआंगी इत्यादी सभी के निर्माल्यका द्रव्य: देवद्रव्य
* पर्युषण महापर्व के स्वप्नाजी के चढावे का द्रव्य : देवद्रव्य
* आरती में रखा हुआ और आरती के चढ़ावें / बोली का द्रव्य : देवद्रव्य
* परमात्मा की भक्ति से दिया हुआ द्रव्य : देवद्रव्य
देवद्रव्य का उपयोग पुराने जिनमंदिरों का जिर्णोद्धार और नये जिनमंदिर / जिन बिंबके निर्माण के अलावा करने से देवद्रव्य भक्षण का भयंकर दोष लगता है।
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