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________________ 5. कपड़ों को 48 मिनिट से ज्यादा भिगोकर नहीं रखना। 6. रसोईघर में डिब्बे वगैरह को भीगे अथवा जैसे-तैसे हाथ लगाए हो तो बराबर पोंछ कर रखना। 7. पेशाब-शौच शक्य हो तो बाहर खुले में जाना। 8. कफ अथवा थूक वगैरह को राख अथवा धूल में मिला देना अथवा कपड़े में लेकर मसल देना। गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय की जयणा (रक्षा) के लिए नियम 1. कुत्ते, बिल्ली, चूहे, सांप, भुंड, चिड़िया, मुर्गा, गाय, भैंस, छिपकली वगैरह की हिंसा न हो उसकी सावधानी रखना। 2. उनके मांस और हड्डी से मिश्रित टूथ-पेस्ट वगैरह वस्तु नहीं वापरनी। 3. फैशन की भी बहुत सारी वस्तुएँ लिप्स्टिक वगैरह इन निर्दोष प्राणियों की हिंसा से बनते हैं। इसलिए उपयोग में नहीं लेना। M. गर्भज मनुष्य स्त्री के गर्भ से जन्म पाने वाले जीव गर्भज कहलाते है। एक बार पुरुष के साथ संयोग होने के बाद स्त्री की योनि में 9 लाख गर्भज पंचेन्द्रिय मनुष्य, 2 से 9 लाख विकलेन्द्रिय तथा असंख्य संमूर्छिम मनुष्य जीवों की उत्पत्ति होती है इसलिए ज्यादा से ज्यादा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। नियम : 1. तिर्यंच पंचेन्द्रिय एवं मनुष्यों को बाँधना नहीं, वध नहीं करना, गाली नहीं देना। 2. नौकरों के पास ज्यादा काम नहीं कराना, हो सके उतना दूसरों को सहाय करना, धर्म की प्राप्ति कराना। 3. बालकों को बचपन में ही संस्कार देना। 4. घर में सासु-बहू, देरानी-जेठानी, ननंद, पिता-पुत्र, भाई-भाई वगैरह एक दूसरों को सुनाना नहीं, झगड़ा नहीं करना, मानसिक पीड़ा हो ऐसा नहीं बोलना, और ना ही करना। 5. बालकों को ज्यादा नहीं मारना, और ज्यादा लाड़ भी नहीं करना। नोट : 1. जीव के 563 भेद चार्ट में से याद करें। मनुष्य के तीन भेद : (1) कर्मभूमि (2) अकर्मभूमि (3) अंतरद्वीप इसमें भी कर्मभूमि के 15, अकर्मभूमि के 30 और अंतरद्वीप के 56, कुल मिलाकर 101 उपभेद होते हैं ___15+30+56=101 भेद मनुष्य गति के, जो गर्भज एवं संमूर्छिम दो भेद से होते हैं। साथ ही गर्भज में पर्याप्त एवं अपर्याप्त दोनों भेद होते हैं। संमूर्छिम के मात्र अपर्याप्त 101 भेद हैं। कुल 303 भेद होते हैं। 68
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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