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__11. जीवदया - जयणा
A. स्वयोग्य पर्याप्तियाँ एकेन्द्रिय - इन्हें आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियाँ होती है। विकलेन्द्रिय (बेई-तेई-चउ) असंज्ञि पंचेन्द्रिय - इन्हें मन सिवाय की पाँच पर्याप्तियाँ होती है। संज्ञि पंचेन्द्रिय (गर्भज मनुष्य, गर्भज तिर्यंच, देव, नारक) – इन्हें छ: पर्याप्तियाँ होती है। कोई भी जीव कम से कम तीन पर्याप्तियाँ पूरी किये बिना नहीं मरता है। परंतु आगे की स्वयोग्य पर्याप्तियाँ यदि पूर्ण करके मरें तो जीव पर्याप्त कहलाता है। यदि पूरी किये बिना मरे तो अपर्याप्त कहलाता है। जैसे कि पृथ्वी के जीव की स्वयोग्य पर्याप्ति चार है। यदि वह चारों पर्याप्तियाँ पूर्ण करके मरे तो पर्याप्त और चौथी अधूरी छोड़कर मरे तो अपर्याप्त कहलाता है। मनुष्य से लेकर वनस्पति वगैरह एकेन्द्रिय में आत्मतत्त्व की सिद्धि 1. मनुष्य में से आत्मा के चले जाने के बाद, उसे ग्लूकोस के बोतल या ऑक्सीजन आदि नहीं
चढ़ते। क्यों कि आत्मा हो तब तक ही (यदि शरीर कोमा में चला जाए तो भी) ब्लड
सर्युलेशन होता है। इसलिए आत्मा है यह सिद्ध होता है। 2. पशु, पक्षी, चींटी, मकोड़ा, मच्छर वगैरह में भी आत्मा है तब तक हलन-चलन, खाने या
डखने वगैरह की क्रिया करते हुए देखे जाते हैं। 3. (अ) पृथ्वी : पत्थर और धातुओं की खान में जो वृद्धि होती है, वह जीव बिना असंभवित
(आ) पानी : कुआँ वगैरह में पानी ताजा रहता है और नया-नया आता रहता है जिससे पानी
___ में जीव की सिद्धि होती है। (इ) अग्नि : तेल, हवा, लकड़े आदि आहार से अग्नि जीवंत रहती है...अन्यथा बुझ जाती
है। इससे अग्नि में जीव की सिद्धि होती है। (ई) वनस्पति - जीव हो तब तक सब्जी, फल वगैरह में ताजापन दिखता है। याद रखो : पृथ्वी, पानी वगैरह में जो जीव है वे तुम्हारे जैसे ही है और वे तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी वगैरह बन चुके हैं। अब यदि तुम इन जीवों की जयणा नहीं पालोगे तो तुम्हें भी पृथ्वी, पानी वगैरह एकेन्द्रिय के भव में जाना पड़ेगा। प्रश्न: पृथ्वीकाय आदि जीवों को स्पर्श से वेदना होती है, वह क्यों नहीं दिखती ? उत्तर: गौतम स्वामी, महावीर स्वामी को आचारांग सूत्र में यह प्रश्न पूछते हैं। प्रभु जवाब देते हैं -कि किसी
मनुष्य के हाथ-पैर काट दिये जायें, आँख और मुँह पर पट्टा बांध दिया जायें। फिर उस व्यक्ति पर
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