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________________ 1. आशुतोष मुखर्जी ने अपनी माता की अनिच्छा जानने के पश्चात् तुरंत ही अपने अफसर लॉर्ड कर्जन को उत्तर देते हुए कहा कि क्षमा करना साहब, विशेष अध्ययन के लिए मुझे विदेश भेजने की आपकी इच्छा पूरी नहीं कर सकता, क्योंकि मेरी माता के अतिरिक्त मैं किसी अन्य की इच्छा नहीं मानता हूँ। 2. देखो उन अ र्यरक्षित को 14 विद्याओं के पारंगत बनने के बाद भी माता-पिता की इच्छा से दृष्टिवाद पढने के लिए संयम जीवन के कठोर मार्ग पर चल पडे थे। उनके जैसी मातृ भक्ति हम में कब आएगी ? माता की महिमा : गौरव दृष्टि से 10 उपाध्याय = एक आचार्य, 100 आचार्य = एक पिता, हजार पिता = एक मा होती है इसीलिए शब्द में पहले माँ शब्द बोला जाता है। जैसे कि माता-पिता, माँ-बाप, जननी-जनक, आई-वडील (मराठी में) । * उपनिषद् में माता-पिता को देव तुल्य माने गए है मातृदेवो भव, पितृदेवो भव * पारसी धर्म की संतान के लिए आज्ञा है, कि वह माता-पिता को तीन बार पूछे कि आपकी क्या आज्ञा है ? कहिए, मैं उस आज्ञा का पालन करूं। * मोहम्मद पैगंबर ने भी कहा है, कि माता के चरणों में बेहिस्त (स्वर्ग) है। * चीनी धर्म में आदेश- माता-पिता का भरण पोषण करना ही मात्र सेवा नहीं है, क्योंकि भरण पोषण तो हम कुत्ते आदि पशु-पक्षियों का भी करते हैं। परंतु माता-पिता की तो भक्तिपूर्वक सेवा की जानी चाहिए। इसीलिए कहा है कि जिसने माता-पिता की सेवा की, उसके लिए स्वर्ग का तोरण द्वार खुल गया। * माता क्षमा-करुणा - धैर्य की त्रिमूर्ति है। इसीलिए कहा है, कि "Mother's Love Knows no Bound” अर्थात् माता-के प्रेम के बराबर किसी का प्रेम नहीं है। माता वात्सल्य से भरी हुई होती है । अंग्रेजी में भी कहाँ है कि Father is the Head of the House, Mother is the Heart of the House अर्थात् पिता घर के मस्तक जैसे हैं, तो माता घर के हृदय जैसी होती है। जो मस्ती आँखों में है, वह सुरालय में नहीं होती, किसी दिल के महालय में नहीं होती. शीतलता पाने के लिए दौडता कहाँ है मानवी जो माता की गोद में है, वह हिमालय मे नहीं होती ।। 57
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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