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अर्थात् जो पेट को नरम रखता है, सिर को ठंडा रखता है, गुस्सा नहीं करता है, और पांव को गरम रखता हो तो उसे कभी भी डॉक्टर के पास जाने का काम नहीं पड़ता। आजकल अस्पतालें बढ़ती जा रही हैं, उसका कारण ऊपर लिखित बाते हैं। पेट को नरम-लाइट रखने के बदले टाइट करते रहते हैं। इस कारण इतनी सुस्ती आती है कि थोडी सी दूरी तय करनी हो तो भी चलने के बदले सीधा गाडी या स्कूटर में बैठ जाते है, फिर पांव गरम कैसे रहे । और बात बात में टेन्शन की वजह से सिर ठंडा कैसे रहे। इस तीनों बातों में आजकल हम उल्टी दिशा में जा रहें हैं। * अधिक आहार के समान रात्रिभोजन भी बिमारी का उद्गम स्थान है। डॉक्टरों ने यह स्पष्ट कह दिया है कि, सोने के 3-4 घंटे पहले ही भोजन कर लेना चाहिए। जिससे भोजन का आसानी से पाचन हो सके। * रात को पाचनतंत्र बंद पड़ जाने से उससे आहार का बराबर पाचन नहीं हो सकता और जिससे पेट खराब हो जाता है। पेट के कारण आँख, कान, नाक, सिर आदि की बिमारियाँ आने में समय नहीं लगता। * सूर्य के प्रकाश में सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि सूर्य का प्रकाश सूक्ष्म जीवों के लिए अवरोधक तत्त्व है। * बड़े - बड़े ऑपरेशन हमेशा दिन के समय में ही होते हैं। * भोजन के पाचन के लिए जरुरी ऑक्सीजन का प्रमाण सूर्य की उपस्थिति में मिलता है। * रात के समय होजरी का कमल मुरझा जाता है, जो सूर्योदय होने के बाद खिलता है अर्थात् शारीरिक दृष्टि से भी रात्रिभोजन को हानिकारक बताया है।
___E. रात्रिभोजन - सर्वसामान्य की दृष्टि से : * रात्रिभोजन के त्याग से शरीर की रक्षा और आत्मरक्षा दोनों होती है। * तन-मन-आत्मा प्रत्येक दृष्टि से रात्रिभोजन भयंकर हानिकर्ता है। यह प्रत्येक के लिए स्वानुभवसिद्ध
* चिड़िया, तोता, कौआ, कबूतर, मोर आदि पक्षी भी सूर्यास्त होने के बाद भोजन का त्याग करके अपने-अपने स्थान पर पहुँच जाते हैं। रात को चाहे कितना भी प्रकाश हो तो भी वे उडते नहीं हैं और भोजन भी नहीं करते हैं। * काल की दृष्टि से भी रात्रि का काल ज्यादातर पापाचरणका काल हैं। क्योंकि उस समय भोगी लोग भोग के पाप में पागल होते हैं, चोर चोरी करने में मस्त रहते हैं। रात को फिरनेवाले उल्लू वगैरह पक्षी खुद के भक्ष्य की शोध में होते हैं। * कौन जाने आज का मानव, मानव है या नरपिशाच है ? आजकल यह उल्टी मान्यता फैली हुई है, परंतु जीवन जीने के लिये भोजन है... भोजन खाने के लिए जीवन नहीं।
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