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पकडी हुई उस मुँहपत्ति को अनामिका ऊँगली के सहारे पकड़कर थोड़ा सा बार निकालकर चित्र के अनुसर रचित-अनामिका बीच में रहनी चाहिए।
इसी तरह अनामिका-मध्यमा
तथा मध्यमा तर्जनी से
बीच में मोड़कर चित्र के अनुसार तीन विभाग करें।
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बाएँ हाथ की अंगुलियों के
छोर से स्पर्श किए बिना मुँहपत्ति को ऊपर रखकर
मन में 'सुदेव' बोलें। और मुहपत्ति को उंगलीयों के मूल तक ले जाइए।
इस तरह उंगली के मूल से हथेली तक बीच में स्पर्श किए बिना
मुँहपत्ति रखकर 'सुगुरू' बोलना चाहिए
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इसी तरह हथेली के बीच से कोहनी तक स्पर्श
किए बिना मुँहपत्ति रखकर 'सुधर्म आदर'
बोलना चाहिए।
हाथ के मध्यभाग से उँगली के छोर तक जैसे पखारते हों,
इस प्रकार मुँहपत्ति को स्पर्श कर 'कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरु' बोलना चाहिए। (चित्र 12 के अनुसार) 'ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना,
चारित्र विराधना परिहरु', तथा 'मनदंड, वचनदंड, कायदंड परिहरु' क्रमश: बोलें।
चित्र संख्या 9-10-11 के अनुसार, आगे क्रमानुसार 'ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरु'
और 'मन-गुप्ति, वचन-गुप्ति, काय-गुप्ति आदलं' बोलें।)
(प्रथम सुदेव (आदि)............. आदरूं बोलते हुए अन्दर लाना है। फिर कुदेव (आदि)............. परिहरूं बोलते हुए बाहर जाना है)