SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है इसलिए घाती कर्म कहलाते हैं और बाकी के अघाती कर्म कहलाते हैं। प्रश्न पटाखे फोड़ने से आठों कर्म किस तरह बंधते है ? उत्तर 1. कागज जलाने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। 2. निर्दोष जीवों की बिना कारण हिंसा करने से एवं उनके अंगोपांग का छेदन करने से दर्शनावरणीय कर्म का बंध होत है। 3. घोंसले में रहे पक्षी अचानक फटाके की आवाज से भयभीत होकर पीड़ित होते हैं, इससे वेदनीय कर्म का बंध होत है जैसे अपने द्वारा फोड़े हुए पटाखों की आवाज से पशुपक्षी भयभीत बनकर पीड़ा भोगते हैं वैसे ही अपने को भी दूसरे जन्म में पीड़ा भोगनी पड़ती है। 4. पटाखे फोड़ने से आनन्द होता है और उत्साह बढ़ता है तो मोहनीय कर्म का बंध होता है। 5. पटाखे फोड़ते अगर आयुष्य खत्म हो जाए और उसी समय मृत्यु हो जाए तो अशुभ आयुष्य कर्म बंधता है। 6. पटाखे फोड़ते अगर जल जाए या मर जाए तो नाम कर्म बंधता है। 7. स्वयं अगर पटाखे नहीं फोड़े किंतु दूसरों को प्रोत्साहित करे या निमित्त बने तो नीच गोत्र कर्म का बंध होता है। 8. किसी को नींद में, पढ़ाई में या शांतिपूर्वक ध्यान करते हुए को विघ्न करने से अंतराय कर्म बंधता है। आ) छटूठे आरे का वर्णन पाँचवें आरे के अंत में अग्नि की बारीश होगी और उसमें भरत क्षेत्र के बहुत लोग जल जायेंगे। कुछ लोग तो वैताढ्य पर्वत के बिल में जाकर रहेंगे। वहाँ पर मनुष्य का शरीर 1 हाथ का, आयुष्य 20 वर्ष का होगा। दिन में सख्त ताप, रात में भयंकरं ठण्डी पडेगी, बिलवासी मानव, मछलियाँ और जलचरों को पकड़कर रेती में दबाएंगे, दिन के प्रचंड ताप में भुन जाने पर रात में उसका भक्षण करेंगे, परस्पर क्लेश करनेवाले, दीन-हीन, दुर्बल, दुर्गन्धी, रोगिष्ट, अपवित्र, नग्न, आचारहीन और माता-बहन-पत्नी के प्रति विवेकहीन होंगे। छ: वर्ष की बालिका गर्भधारण कर बालकों को जन्म देगी। सुअर के सदृश अधिकाधिक बच्चे पैदाकर महाक्लेश का अनुभव करेंगी। धर्म पुण्य रहित, अतिशय दु:ख के कारण अशुभ कर्म उपार्जन कर नरक-तिर्यांचादि गति प्राप्त करेंगे। इस आरे में दुःख ही दु:ख है। जिसे ऐसे छठे आरे में जन्म नहीं लेना हो, उसे जीवनभर रात्रि भोजन, कंदमूल वगैरह नहीं खाना चाहिए। इ) देवलोक का स्वरूप देवता चार प्रकार के होते हैं। दो प्रकार के देव नीचे अधोलोक में रहते हैं और दो प्रकार के देव अपने ऊपर उर्ध्वलोक में रहते हैं। नीचे - भूत, प्रेत, व्यंतर एवं भवनपति, ऊपर - सूर्य, चंद्र, ज्योतिष एवं सौधर्म वगैरह वैमानिक देव हैं। जिस प्रकार के देव का आयु एवं गति बांधी हो वैसे देव की शय्या में जीव उत्पन्न होते हैं। उत्पन्न होते ही 16 वर्ष के युवान के जैसे शरीर वाले बन जाते हैं। मरण तक वैसे ही रहते हैं। मात्र मरण के 6 महीने पहले इनकी गले की फूल की माला मुरझा जाती है। जिससे मरण का समय 59
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy