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________________ प्रश्न. 4 नीच गोत्रकर्म बंध का क्या फल है ? उत्तर 8 नीच कुलों में जन्म मिलना। किसी भी स्थान में आदर-सत्कार - सन्मान नहीं मिलना । 8. अंतराय कर्म : 8. अंतराय कर्म यह कर्म जीव को दान, लाभ, भोग, उपभोग एवं वीर्य में अंतराय कराता है। यह कर्म आत्मा के अनंतवीर्य गुण को रोकता है। इस कर्म के उदय से वस्तु पास में हो फिर भी दान-देने में और स्वयं के भोगने के उपयोग में नहीं आती। यह कर्म भंडारी जैसा है। राजा की इच्छा हो फिर भी भंडारी की इच्छा न होने के कारण दान नहीं दे सकता। उसी तरह इच्छा होने के बावजूद कर्म के उदय से दान या भोग नहीं कर सकता। प्रश्न. 1 कौन से कारण से अंतरायकर्म बंध बंधता है ? उत्तर जिनेश्वर भगवान की पूजा भक्ति आदि में विघ्न करना। हिंसा करना, धर्म का नाश करना, दान देते हुए को रोकना, झूठ बोलना, धन लूट लेना, धन चुराना, दूसरों की भागीदारी में विघ्न करना। शक्ति होते हुए भी धर्म क्रिया में आलस करना। पक्षियों के पिंजरे में पानी, अन्न न डालना, पराई धरोहर (मिलकत) दबाना आदि । प्रश्न. 2 अन्तरायकर्म बंध का फल क्या है ? उत्तर लक्ष्मीवान होते हुए भी कृपणता प्राप्त होती है। पेट भर खाना नहीं मिलता। मेहनत करने पर भी धन का लाभ नहीं होता है। निर्धनता, रोगी, खाने की अरुचि, अजीर्ण हो जाना, मनोकामना अपूर्ण रहना । कर्म कुल आठ हैं। उसमें से सात कर्म का जीव समय-समय पर बंधन करता है और आयुष्य कर्म बंधन जीवन में एक बार करता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंतराय यह चार कर्म आत्मा के मूल गुणों का घात करते 58
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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