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________________ B. दान के पांच भूषण 1. आनंद अश्रु : आनंद में आँसु आ जाये, मेरे जैसे को यह अद्भुत लाभ मिल गया। लेने वाला उपकारी लगेगा तो ही आनंद अश्रु आयेंगे। रेवती, चंदनबाला श्राविका देखी... क्या थे? संगम शालीभद्र बना। कैसे? आनंद के अश्रु से। मुनिभगवंत को गोचरी वहोरावते कितना आनंद आता है ये तुम्हारी अनुभूति का विषय है। महाराज साहेब बारबार लाभ देना। ऐसा बार-बार कहते हुये आनंद के आंसु भी आ जाते है। 2. अत्यधिक रोमांचित : __ शरीर में रोमाच खडा हो जायें, बहुत से श्रावक कहते है साहेब देखो शरीर के रोम-रोम खडे हो गये। वैसा ही, कुछ भी दान देते वक्त अपना रोम-रोम खडा होना चाहिए। 3. बहमान भाव: सामान्य भाव नहीं अपितु बहुत ज्यादा आदर सत्कार पूर्वक दान देना। मन में अहोभाव पूर्वक थोड़ा झुककर दान देना चाहिए। 4. प्रियवचन: मधुर वचन पूर्वक दान करना । ये धरती तो रत्नविभूषित है। ये दान का मौका मुझे दिया, मैं आज धन्य बन गया। यह बात खास ध्यान रखने जैसी है। ‘फलवाले पेड के पास, जो लोग फल लेने को जाते है', 'भरी हुई नदी के पास जो लोग पानी पीने के लिए जाते है', तो पेड या नदी कभी ऐसा नहीं विचार करते है कि लोग मेरे पास ही क्यो माँगते है ? तो क्या भीखारी के पास कोई माँगनी कर सकते है क्या? अतः दान देनेवाले को बहुत ही मधुर वचन से बुलाना । 5. अनुमोदनाः दान करने के बाद मन ही मन में आनंद का भाव होना चाहिये । संगम ने साधु भगवंत को खीर वहोराने के बाद कितना आनंद का भाव भाया था ? कैसे महात्मा ? कैसा दान ? आगे के भव में शालीभद्र बन गये। पाँच दुषणों से दूर रहना.. पांच भूषण को अपना लेना, सफल बन जाओगे।
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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