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________________ में ही पैसे दे दिये। उदाहरण के तौर पर घोडागाडी या रिक्शे में से उतरते ही उसी समय तुम्हारा कोई मित्र तुमसे मिलने आये, तब तुम पहले उसके पैसे चुका देते हो या अपने मित्र से बातचीत में लग जाते हो ? अगर बात करने लग जाये तो वह विलंब है। संघ में, मंदिर में या उपाश्रय में जो भी बोली बोलते हो, फिर तुरंत ही भर देते हो या एक वर्ष लगाते हो ? भगवान ने तीन प्रकार की बात की है... करण, करावन और अनुमोदन। तुम्हारी ताकत प्रमाण बोली बोलो। ताकत से ज्यादा बोलने की बिल्कुल जरुरत नहीं। बोली आगे बढ जाये तो बैठे बैठे अनुमोदना करो, यह भी धर्म है। इसका अर्थ यह नहीं समझना कि शक्ति होते हुए भी बोलियाँ नहीं बोलना । बोली बोलने के बाद 24 घंटे से अधिक देर से रकम भरे तो ये भी विलंब है। उससे दान दूषित बन जाता है। 3. तिरस्कार : तीसरे नंबर का दोष है तिरस्कार ... अप्रिय वचन । कोई माँगने आयें तो दान तो जरुर करते है लेकिन कहते है चल चल, आगे चल । इससे दान दुषित होता है। अनादर मन में होता है, तिरस्कार भाव वचन के द्वारा प्रगट होता है। सबके बीच में तु माँगने क्यों आया? शर्म के कारण मुझें देना पडा ? भिखारी के क्षेत्र में तिरस्कार बहुत होता है। दान करने के बाद बोलकर बिगाडना, इससे दान दूषित होता है। 4. अभिमान : चौथे नंबर का दोष है अभिमान ... मैं हूँ तो तुम्हारी संस्था चलती है। खुद के द्वारा किया हुआ दान को सबके आगे प्रगट करते रहना और अपने अभिमान का पोषण करते रहना। तुम बैंक में पैसे लेने गये, केशीयर ने तुमको पैसे दिये इसमें केशीयर को अभिमान करने का राईट है क्या ? इसी तरह तुम तो भगवान के केशीयर हो । दान करने के बाद अभिमान करने का राइट नही है। प्रभु का प्रभु को अर्पण किया इसमे अभिमान क्यों करना ? 5. पश्चाताप : पांचमें नंबर का दोष है पश्चाताप ... दान करने के बाद पश्चाताप नही करना, दान दुषित बन जाता है। एक भाई महाराज साहब को मिलने आये और कहा - साहिब हस्पताल में 11 लाख का डोनेशन किया है। महाराज साहेब ने उस भाई को समझाया, हस्पताल में दान दिया उसका मैं विरोध नहीं करता परंतु 11 लाख की सही वस्तु लेकर देनी थी । श्रावक पुछता है, साहेब समझा नहीं ? साहेबजी बोले - हस्पताल में तुमने 11 लाख लिखाया, वहाँ तो गर्भपात के भी आपरेशन होते है। पंचेन्द्रिय जीवों की हत्या का पाप लगेगा । श्रावक खुश हो गया। साहेब, कमाल की बात बता दी। यह है विवेक की हाजरी । तुम्हारे दो रुपये देने से भीखारी सीगरेट अथवा तंबाकु खाता हो तो मौसंबी अथवा केला वगैरह खाने को देना । पर दान देने का बंद नहीं करना। दान देने के पूर्व विवेक रखना एवं दान देने के बाद पश्चाताप नहीं करना । 49
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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