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आज के बच्चे भविष्य के रक्षक हैं। उनके ऊपर जैन संघ की, समाज की जवाबदारी आने वाली है। यदि उनकें सुसंस्कार नहीं होंगे तो वे उस जवाबदारी को कैसे सम्हाल सकेंगे?
अत: बच्चों ! आपका जीवन कोरी स्लेट जैसा है, उस पर धार्मिक शिक्षण का प्रारंभ होना महत्त्व की बात है।
प्राचीन काल में घर ही पाठशाला थी। माता-पिता ही बच्चे के शिक्षक थे और परिवार उस विद्यार्थी का कक्षावर्ग था, परंतु आधुनिक शिक्षा का वातावरण सृजित होने व डिग्रियों के प्रसार ने बच्चों के सच्चे शिक्षक का उत्तरदायित्व निभाना माता-पिता भुल गए। अब तो स्कूल-कॉलेजों में शिक्षण के नाम पर विष परोसा जा रहा है। आधुनिक शिक्षा का परलोक-पुण्य-पाप-जैसी नैतिक धर्म की बातों के साथ कुछ भी संबंध नहीं है। ऐसी सीख-सलाह स्कूल के भारी भरकम पाठ्यक्रम और पुस्तकों में कहीं भी देखने को नहीं मिलेगी। माता-पिताओं ! आपने जिन्हें लालन-पालन करके बडा किया वे बच्चे आपको लात मारे, फिर भी आप आधुनिक शिक्षण के गुणगान करना नहीं छोडते। ऐसी शिक्षा के प्रति आपका कितना अंधा अनुराग है ? ऐसा ज्ञान प्राप्त करके आपकी संताने आपकी न रह पाएं, यह आप सहन कर सकते हैं, परंतु सम्यग्ज्ञान प्राप्त करके साधु बन जाएँ, यह आपको जरा भी बर्दाश्त नहीं। आपका पुत्र आपको पैसे कमाकर ले आएँ, इतना ही आप चाहते हो।
पाठशाला धार्मिक संस्कारों का केन्द्र है। मानव जीवन का मूल्य समझाने वाली शिक्षिका है। अहिंसा का पाठ पढाने वाली शिक्षा का केन्द्र है। बालक-बालिकाओं का जीवन निर्मात शिल्पकार है। भवसागर तैरने की शिक्षा देने वाला शिक्षक है, विनय, विवेक-वैराग्य-विरक्ति धर्म का पठ पढाने वाला प्रिन्सिपल है, बुरी आदतों -दुर्गुणों से बचाने वाला कल्याण मित्र है।
अत: हे बच्चों ! आप लोग ऐसी पाठशाला में पढ़ने के लिए प्रतिदिन अवश्य जाना, क्योंकि धार्मिक शिक्षण से हित-अहित, लाभ-हानि, भक्ष्य-अभक्ष्य, पीने योग्य-न पीने योग्य, करने योग्य-न करने योग्य कार्यों की जानकारी प्राप्त होती है। 1. जिस प्रकार आप स्कूल में पढने, कैसे तैयार होकर जाते हो, उसी प्रकार तैयार होकर पाठशाला मे
जाना चाहिए। 2. पाठशाला में प्रवेश करने पर शिक्षक बैठे हो तो उनके चरणस्पर्श करके प्रणाम करें। 3. यदि शिक्षक आये नहीं हो, तो जब वे बाहर से आएं तब सभी बालक एक साथ खडे होकर उन्हें हाथ
जोडकर प्रणाम करें। इसी प्रकार घर पर लौटते समय भी पुन: प्रणाम करें। 4. पाठशाला में पढो तब कुछ भी खाना पीना नहीं। 5. शिक्षक के सामने न बोलें, उनका अपमान न करें, अपमान करने से हमें ज्ञान नही चढता। पाठशाला में किसी के साथ शैतानी, मस्ती-लडाई-झगडा न करें, न किसी को अपशब्द कहें।
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