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________________ 4. ज्ञान A. पाठशाला डच्चों ! पाठलाशा तो धर्म के संस्कार प्राप्त करने के लिए विशेष साधन है, उसमें छोटे-बड़े सभी को नित्य जाना चाहिये और समय पर पहुँचना चाहिये। स्कूल-कॉलेजों में तो पेट भरने व पैसे कमाने की शिक्षा और संस्कारों का नाश करने वाला ज्ञान प्राप्त होता है, फिर भी वहाँ सभी शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते है। पाठशाला में आत्मा को गुणों से भरने की शिक्षा, सच्चा ज्ञान और आत्मा के कल्याण का ज्ञान मिलता है फिर भी यहाँ कम आते है। स्कूल में हजारों रुपयों के डोनेशन देते समय-माता-पिता विचार नहीं करते एवं इस विषैले ज्ञान के लिये ट्यूशन, रिक्षा किराया, फीस के पैसे भी भरने पड़ते है, जबकि पाठशाला में तो न किसी प्रकार की फीस या न किसी प्रकार का डोनेशन । फिर भी स्कूल में पढने के लिए सभी जाते है, परंतु पाठशाला में नहीं। स्कूल में सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। सच्चा ज्ञान अर्थात् जिसके माध्यम से आत्मा का परिचय हो, पाप-पुण्य का विवेक समझ में आए, परलोक की चिंता, वैराग्य भाव पैदा हो, वही सच्चा ज्ञान कहलाता है। उससे जो विपरित होता है वह मिथ्याज्ञान कहलाता है ! सच्चा ज्ञान ही प्रकाश है, यही जीवन है, यही परम शक्ति है, सच्चा ज्ञान तृतीय नेत्र है, ऐसे ज्ञान से ही जीवन में सुख-शांति समाधि की प्राप्ति होती है। धन की रक्षा आपको करनी पड़ती है, जबकि सच्चा ज्ञान आपकी रक्षा करेगा... पढना गुणना सबही झूठा, जब नहिं आतम पिछाना, वर विना क्या जान तमाशा, लूण (नमक) विण भोजन कुं रवाना।। ज्ञान भोग प्राप्ति का नहीं, बल्कि ज्ञान तो भगवान को प्राप्त करने का साधन है। पढमणाणं तओ दया- प्रथम ज्ञान होना आवश्यक है, फिर दया का पालन हो सकता है, वरना जाने बिना दया पालन कैसे संभव है ? अत: बडे होने के बाद भी पाठशाला में जाना चाहिये, वहाँ जाने में शर्म नहीं रखनी चाहिये। हमें तो ज्ञान लेना है। बड़े हो जाने के बाद क्या स्कूल कॉलेज नहीं जाते ! वहाँ शर्म नहीं आती, तो फिर यहाँ शर्म क्यों आती है ? मता-पिता को अपनी संतान को समझा बुझाकर पाठशाला में भेजने के लिये विशेष ध्यान रखना चाहिये। स्कूल भेजने के लिये माता-पिता ध्यान रखते है, कितना परिश्रम उठाते है, उसी प्रकार पाठशाला भेजने में भी वैसा ही आचरण करना चाहिये, क्योंकि आज विष को उगलनेवाले टी.वी., विडियो-रेडियो व मोबाइल द्वारा वातावरण विकृत और खराब हो रहा है। उसे थोडे अंश में निर्मूल करने वाली पाठशाला है, जहाँ संस्कार सिंचन हो सकता है। साथ ही बालक के प्रारंभिक जीवन में थोडे वर्षों तक संस्कार डाले जाएँ, तो संपूर्ण जीवन सुधर सकता है तथा दूसरों को भी सुधार सकता है। एक ज्योति ८ से दूसरी ज्योति जल उठती है। (17
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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