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________________ जैन तत्त्व दर्शन अच्छे व्यक्तियों का मन भी बिगड जाता है । अत: इसकी व्याख्या चार प्रकार से की गई है । = 1. टी. अर्थात् टेन्शन, वी. अर्थात् वृद्धि जो टेन्शन में वृद्धि करें, वह टी.वी. 4. टी. अर्थात् टाइम, वी. अर्थात् वेस्ट = जो आपका टाइम वेस्ट करे, उसका नाम टी.वी टी.वी. ...यानी ?... 2. टी. अर्थात् तबियत, वी. अर्थात् (वगाडे) बिगडे 3. टी. = टोटल, वी. = विनाश, जिससे आपका टोटल (संपूर्ण) विनाश हो, उसका नाम टी.वी. प्रभु दर्शन सुख संपदा, प्रभु दर्शन नवविध । प्रभु दर्शन थी पामीये, सकल पदारथ सिद्ध ॥ = जो अपना स्वास्थ्य बिगाडे, उसका नाम टी.वी. दूरदर्शन नहीं परन्तु दुःखदर्शन : हिंदी में टी.वी. को दूरदर्शन कहते है, परन्तु उसकी व्याख्या एक लेखक ने की है कि टी.वी. को दूर से ही दर्शन अच्छे, निकट न जाएँ अर्थात् दूर से ही सलाम करोगें तो सुरक्षित रह सकोगें, सकुशल रह सकोगें। जैसे सिंह बाघ- साँप - भूत-पिशाच के निकट नहीं जाते, उसी प्रकार टी.वी रुपी भूत के भी निकट नहीं जाना चाहिए, वरना यही दूरदर्शन आपके लिये दुःखदर्शन रुप बन जाएगा। यदि आपको दर्शन करने ही हों, तो जिनेश्वर भगवंत के करना । देवदर्शन - गुरुदर्शन करना । दूरदर्शन से शरीर दीखता है, शरीर के दर्शन होते है, जबकि देवदर्शन से आत्मदर्शन होता है, जिससे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार प्रभु के दर्शन से आपको सुख संपत्ति, नौ निधि और सभी इष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है, इसलिये स्तुति में बोलते है कि - परन्तु इस टी.वी. दर्शन पर पिक्चर आदि देखने से उससे विपरित ही प्राप्त होगा। इसीलिये एक चिंतक ने कहा है कि टी.वी. दर्शन दुःख आपदा, टी.वी. दर्शन नव पीड । टी.वी. दर्शन थी पामीये, भव भ्रमण नी भीड 57
SR No.006117
Book TitleJain Tattva Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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