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जैन तत्त्व दर्शन
3. पर्युषण महापर्व के 5 कर्तव्य
1) अमारी प्रवर्तन :
आठ दिन तक तन-मन-धन से अहिंसा का पालना करना व करवाना । जैसे पूज्य हेमचन्द्राचार्यश्री ने कुमारपाल महाराजा से तथा पूज्य हीरसूरीश्वरजी म.सा. ने अकबर बादशाह से करवाया था ।
2) साधर्मिक वात्सल्य :
जैन बंधुओं के प्रति भाई से भी अधिक प्रेम, सद्भाव, मैत्री, वात्सल्य रखना ।
भोजनादि से उनकी भक्ति करना ।
3) परस्पर क्षमापना :
पर्युषण पर्व का सार है- क्षमापना व क्रोध की उपशान्ति । जो खमता है व रवमाता
है, वही आराधक है।
4) अट्टम तप:
पर्युषण पर्व व संवत्सरी की आराधना का कर (टेक्स) अठ्ठम (तीन उपवास ) करके चुकाना चाहिए। न हो सके तो अलग अलग तीन उपवास, 6 आयंबिल, 9 निवि, 12 एकासना, 24 बियासना या 60 नवकार मंत्र की माला (6 हजार स्वाध्याय) से भी यह लगान - टेक्स चुकाना चाहीए। यह तप संवत्सरी आलोचना शुद्धि हेतु है ।
5) चैत्य परिपाटी :
जुलूस के साथ सकल संघ सहित जिनमंदिरों में जाकर दर्शन पूजन करना । जिन भक्ति बढानी चाहिए ।
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