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जैन तत्त्व दर्शन
पर्व ज्ञानपंचमी
चौमासी चतुर्दशी
एकादशी
कार्तिक - चैत्री पूर्णिमा
नवपदजी की ओली
अक्षय तृतीया
पर्युषण महापर्व
13. सम्यग् ज्ञान
A. मेरे पर्व
1. मुख्य पर्व, तिथि एवं आराधना
तिथि
कार्तिक सुद 5
कार्तिक- फागुण - आषाढ सुदि 14
मगर सुदि 11
कार्तिक एवं चैत्र सुदि 15
सुदि 7 से 15 एवं
आसोज सुदि 7 से 15 तक
वैशाख सुद
भाद्रवा वदि 12 से सुदि 4 तक
आराधना
ज्ञान
चातुर्मासिक आराधना
मनपूर्वक 150 कल्याणक
की आराधना
श्री सिद्धाचलजी यात्रा
बलपूर्वक
नवपदजी की आराधना
वर्षीतप पारणा
क्षमापनादि पाँच कर्तव्य
एवं पौषधादि धर्माराधना
2. श्री पर्युषण महापर्व
श्री वीतराग सर्वज्ञ भगवंत द्वारा कथित सर्व पर्वों में पर्युषण महापर्व उत्कृष्ट पर्व है ।
तप के बिना मुनि की शोभा नहीं, शील के बिना स्त्री की शोभा नहीं, शौर्य के बिना वीर की शोभा नहीं, दया के बिना धर्म की शोभा नहीं, इसी तरह पर्युषण महापर्व की आराधना के बिना जैन श्रावक की शोभा नहीं ।
पर्युषण महापूर्व में बहुमान पूर्वक कल्पसूत्र शास्त्र का श्रवण, देव गुरु की भक्ति पूजा, स्नात्र पूजा, तप-संयम आदि के अनुष्ठान पूर्वक मन-वचन-काया की सुन्दरतम आराधना से तीन भव में मोक्ष होता है। सात आठ भव में तो जीव अवश्य सिद्ध गति को प्राप्त करता है ।
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