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_जैन तत्त्व दर्शन
B. मेरे तीर्थ
1. तीर्थ की महिमा ___जो तार कर किनारे पहुँचा दे उसी का नाम तीर्थ है अथवा जो संसाररुपी समुद्र से उबार कर मुक्ति नगर रुपी किनारे पर सकुशल पहुँचा दे वही तीर्थ है। तीर्थ यात्रा करने वाले यात्री की चरण रज को भी पवित्र कहा गया है। जो भव्यात्मा तीर्थ यात्रा के लिए परिभ्रमण करता है उसका संसार परिभ्रमण दूर हो जाता है।
___ अनंत के यात्री को अनंत की यात्रा से मुक्त करवा कर अनंत काल के लिए अनंत आत्माओं के साथ अनंत सुख में निमन करवाने का सर्वोत्कृष्ट साधन तीर्थ है। तीर्थ के दो प्रकार है: 1.जंगम तीर्थ 2.स्थावर तीर्थ।
1. जंगम तीर्थ : विचरण करते हुए केवली भगवंत, पांच महाव्रतधारी साधुसाध्वी भगवंत जंगम तीर्थकहलाते है।
2. स्थावर तीर्थ : जो स्थिर है वह स्थावर तीर्थ कहलाते है। भगवान के पाँच कल्याणक की भूमि तीर्थ है।
2. मुख्य तीर्थ के नाम, मूलनायकजी एवं राज्य
तीर्थ
मूलनायकजी राज्य
तीर्थ
मूलनायकजी राज्य
राणकपुर
ऋषभदेवजी
राजस्थान
तारंगा
अजितनाथजी
गुजरात
गिरनार
नेमिनाथजी
गुजरात
शत्रुजय ऋषभदेवजी गुजरात हस्तिनापुर ऋषभदेवजी उत्तरप्रदेश भोपावर शांतिनाथ मध्यप्रदेश राजगृही मुनिसुव्रतस्वामी बिहार शंखेश्वर पार्श्वनाथजी गुजरात कुंभोजगिरि पार्श्वनाथजी महाराष्ट्र
सम्मेतशिखर पार्श्वनाथजी
| बिहार
नाकोड़ा
राजस्थान
पावापुरी केसरवाडी
पार्श्वनाथजी महावीरस्वामीजी बिहार आदिनाथजी तमिलनाडु
आबू-देलवाडा आदिनाथजी
राजस्थान