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जैन तत्त्व दर्शन
पीते, गरमी लगे तो पंखा नहीं करते, जोर से भूख लगी हो कुछ खाने को न मिले, सामने फल का देर पड़ा हो तो भी लेकर नहीं खाते। 2. झूठ नहीं बोलना : मात्र धर्म संबंधी ही नहीं, कोई मारने आ जाये तो भी सत्य ही बोलते हैं। 3. चोरी नहीं करना : रास्ते पर रही हुई मिट्टी लेनी हो तो भी उसके मालिक को पूछे बिना नहीं लेते। 4. ब्रह्मचर्य का पालन : साधु भगवंत स्त्री का और साध्वीजी पुरुष का स्पर्श नहीं करते। चाहे एक दिन का छोटा बालक हो तो भी साध्वीजी नहीं छूते। 5. परिग्रह का त्याग : पैसा, सोना, चांदी, घर, दुकान, पुत्र, परिवार, 2 जोडी से अधिक कपड़े, बर्तन वगैरह किसी प्रकार की सामग्री नहीं रखते हैं। कोई सोने (सुवर्ण, रत्न) की माला वहोराने आ जाये तो भी उस पर ममत्व नहीं रखकर मना कर देते हैं। आश्चर्य है कि एक पैसा नहीं रखते, नहीं छूतें तो भी आराम से पूरी जिन्दगी आनंद पूर्वक व्यतीत करते हैं। एक शहर से दूसरे शहर पैदल ही जाते हैं। उपाश्रय में ही रहते हैं, निर्दोष एवं अचित्त आहार वगैरह वापरते हैं। प्रश्न-2 : गुरुभगवंत को वंदन करने से क्या लाभ होता है ?
1.अज्ञान रूपी अंधकार का नाश होता है। 2. नीच गोत्र का क्षय होता है। 3. अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 4. असंख्य भवों के पाप नाश होते हैं। 5. तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन होता है।
6. परमात्मा की आज्ञा का पालन होता है। विहार से लाभ : नीचे देखकर चलने से जीव हिंसा नहीं होती, शरीर हल्का होता है। किसी भी वाहन का गुलाम नही होना पड़ता। प्रतिक्रमण से लाभ : दिन-रात के पाप नाश होते हैं। एक्सर्साईज होती है, बिमारी नहीं आती।
संसार में जीव कितना भी काम करता है तो भी वह पापके भार से भारी ही होता है। वह कितना भी धर्म करे फिर भी छ: जीव निकायों की हिंसा से दूर नहीं रह सकता । अर्थात् कच्चा पानी, अग्नि, हरियाली, नमक वगैरह का उपयोग करना ही पड़ता है। संसार में चारों तरफ बंधन ही है जबकि गुरु भगवंत हमेशा स्वेच्छा से आराधना कर सकते हैं। गुरु भगवंतों को हर स्थान पर मान मिलता है। चाहे कितनी भी भीड़ हो, हजार रूपये की फीस हो, फिर भी फ्री में आदर पूर्वक उनको आगे बैठने को मिलता है। क्योंकि उन्होंने संसार का त्याग किया है।