SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जैन तत्त्व दर्शन 2. साधुओं की वैयावच्च हमें साधु-साध्वी जहाँ भी दिखें विनयपूर्वक मस्तक झुकाकर 'मत्थएण वंदामि' कहना चाहिए। अगर (समय और स्थान) अनुकूलता हो तो वंदन भी करना चाहिए। हमें रोज उनके पास जाकर वंदन करके सुख-शाता पूछनी चाहिए। ___ साधु-साध्वी म.सा. जब घर पर गोचरी के लिये आयें तो खड़े होकर विनय व भावपूर्वक आहार वोहराना चाहिए। साधुओं की वैयावच्च और उन्हें आहार, वस्त्र, उपकरण, औषधि आदिसुपात्र दान करने से पुण्य का उपार्जन होता है और शुभ कर्म बंधता है। शालिभद्र के जीवन मे पूर्वभव में साधु भगवंत को भावपूर्वक खीर वहोरायी थी तो उसे 99 पेटी (33 वस्त्र की, 33 आभूषण की, 33 भोजन की) देवलोक से आती थी। साधु-साध्वी को आहार नहीं वोहराने से या वहोराकर मन में अशुद्ध भाव रखने से, कोई साधु को भोजन पानी देते (वहोरते) रोकने से हमें पापकर्म का बंध होता है अथवा अंतराय कर्मबंधन होता है। दृष्टांत : मम्मण सेठ (पूर्वभव में) कंजूस था। एक बार व्याख्यान व पूजा में श्री केसरिया लड्डु की प्रभावना हुई। वह घर में ले आया । इतने में मुनि आये तो उन्हें पूरा लड्डूवहोरा दिया। सेठ से किसी ने कहा लड्डू बहुत स्वादिष्ट थे। थोड़ा अपने लिए रखना था तो वे उस मुनि के पीछे-पीछे घूमने लगे। तब मुनि ने सोचा यह लड्डू न मुझे खाने देगा और न मैं इसे वापिस दे सकता हूँ, इसलिए लड्डू को मिट्टी में परठ दिया । और यह बात मम्मण सेठ (पूर्वभव) के मन में रह गई कि मुझे इस साधु ने लड्डू नहीं दिया। और वह अगले भव में अपार संपत्ति के मालिक मम्मण सेठ बने (लड्डू को वोहराने से संपत्ति तो प्राप्त हुई लेकिन वे उसे भुगत नहीं सके)। वह तेल और चवले के सिवाय अन्य कोई खाना नहीं खाता था इसलिए तेल और चवले खाकर जिंदगी निकालनी पड़ी। ___ आजकल डायबिटीज जैसी कई बिमारियाँ हमारे जीवन में अंतराय उत्पन्न करती है तो हमें समझ लेना चाहिए कि मम्मण सेठ जैसे कंजूस नहीं बल्कि शुद्ध भाव से साधु साध्वी की वैयावच्च में जीवन व्यतीत करना चाहिए।
SR No.006117
Book TitleJain Tattva Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy