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________________ ज जैन तत्त्व दर्शन 5. नवपद A. सिद्ध के 8 गुण जीव का उसको ढंकनेवाला जीव का स्वरूप कर्मरूपी बादल नकली स्वरूप अनन्त ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म | अज्ञान, मन्द, मूर्ख, जड, विस्मरणशील... अनन्त दर्शन | दर्शनावरणीय कर्म आँख वगैरह नहीं होना । अर्थात् अन्धे, बहरे, लूले लंगडे तथा नींद के प्रकार। सम्यग् दर्शन | मोहनीय कर्म मिथ्यात्व, अविरति, राग, द्वेष, काम, क्रोध... अनन्तवीर्यादि अन्तराय कर्म दुर्बलता, कृपणता, दरिद्रता, पराधीनता... अनन्त सुख | वेदनीय कर्म साता (सुख) असाता (कष्ट, पीडा, दुःख) अजर-अमरता आयुष्य कर्म जन्म, जीवन, मरण अरूपीपना नाम कर्म नरकादि गति, एकेन्द्रियादि शरीर, रूप, यश, अपयश, सौभाग्य, दुर्भाग्यादि... अगुरू-लघुपना गोत्र कर्म उच्चकुल, नीचकुल अज्ञान ऊंचकुल नीचकुल ज्ञानावरण अंधापादि निद्रा दर्शनावरण गोत्रकर्म अनंत ज्ञान अगुरु लधुता अनंत दर्शन गति, शरीर इन्द्रियादि यश, अपयश, साभाग्य, दार्भाग्यादि नामकर्म अरुपिता जीव अरुपिता सम्यग्दर्शन बीतरागता मोहनीय मिथ्यात्व अविरति राग-द्वेष काम-क्रोधादि अनंतवीर्य आदि स्थिति अक्षय आयुष्य अनंत सुख अंतराय जन्म जीवन वेदनीय कृपणता दरिद्रता पराधीनता दुर्बलतादि शाता-अशाता 30
SR No.006117
Book TitleJain Tattva Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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