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जैन तत्त्व दर्शन
मामास
4.ज्ञान
A. ज्ञान के पाँच प्रकार ___ 1. मतिज्ञान : मन एवं पांच इन्द्रिय से होनेवाले सामान्य ज्ञान को मतिज्ञान कहते है। 1. 2. श्रुतज्ञान : शास्त्र आदि को सुनने से, पढ़ने से, शब्द एवं अर्थ का जो विशिष्ट ज्ञान
होता है उसे श्रुतज्ञान कहते है। 3. अवधिज्ञान : आत्मा से होनेवाले रुपी पदार्थ के प्रत्यक्ष ज्ञान को अवधिज्ञान कहते है। 4. मन:पर्यव ज्ञान : संज्ञी पंचेंद्रिय जीवों के मन की विचारणा का ज्ञान होना, मन:पर्यव ज्ञान है। 5. केवलज्ञान : संपूर्ण लोक-अलोक में रही हुयी तीनों काल की, सर्व वस्तुओं का ज्ञान
होना केवलज्ञान है।
B. ज्ञान संबंधी विनय-विवेक 1. ज्ञान नियमित समय मे पढ़ना। 2. विनय एवं बहुमान सहित ज्ञान पढना | 3. ज्ञान पढने के पूर्व उपधान तप करना | 4. सामायिक, प्रतिक्रमण करते समय अशुद्ध अक्षर नही बोलना। 5. काना, मात्रा, बिंदु अधिक या कम नही बोलना। 6. सूत्र, अर्थ एवं दोनो अशुद्ध नही बोलने । 7. अपवित्र स्थान में नही पढना । 8. ज्ञान के उपकरण, ठवणी, कागज, पैन, पेंसिल, आदि को पैर नही लगाना,
थुक नही लगाना। 9. थूक से अक्षर नही मिटाना। 10. ज्ञान के उपकरण को पास में रखकर भोजन, मल-मूत्र नही करना । 11. ज्ञान के उपकरण को सिर के नीचे रखकर नही सोना । 12. ज्ञानी व्यक्ति के प्रति द्वेष, ईर्ष्या नही करनी चाहिए। उनकी आशातना भी नही करनी । 13. किसी को पढ़ने में अंतराय नही करना चाहिए। 14. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान, केवलज्ञान इन पांच ज्ञानों में अश्रद्धा
नही करनी। 15. गुंगे, तोतले व्यक्ति की हंसी, मजाक नही करना।