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जैन तत्त्व दर्शन
B. नवांगी पूजा के दोहे, रहस्य
: जल भरी संपुट पत्रमा, युगलिक नर पूजत ऋषभ चरण अंगुठडे, दायक भवजल अंत ॥1॥
हे प्रभु! आपके अभिषेक हेतु युगलिक जब पत्र संपुट में पानी भर लाए तब तक आपको इन्द्र ने भक्तिपूर्वक वस्त्राभूषण से सज्जित कर दिया था । यह देख विनीत युगलिकों ने प्रभु के चरणों की जल से पूजा की। इसी प्रकार मैं भी आपके चरणों को पूजकर भवजल का अंत चाहता हूँ ।
2. जानु
: जानु बले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश
1. चरण
खड़ा खड़ा केवल लघुं, पूजो जानु नरेश 121
हे प्रभु! आपने इस जानु बल से काउस्सग्ग किया, देश-विदेश में विचरण किया और खड़े-खड़े ही आपने केवल ज्ञान प्राप्त किया । आपकी इस जानु पूजा के प्रभाव से मेरे भी जानु में वह ताकत प्रगट हों । लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसीदान
T 3. हाथ के कांडे :
कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवी बहुमान ॥3॥
हे प्रभु! लोकांतिक देवों के वचन से आपने इन हाथों से वर्षीदान दिया, आपकी इस पूजा के प्रभाव से मैं आपके समान वर्षीदान देकर संयम को स्वीकार करूँ ।
4. खंभे (कंधा) :
मानगयुं दो अंश थी, देखी वीर्य अनन्त
भुजा बले भव जल तर्या, पूजो खंध महंत ॥ 4 ॥
प्रभु! आपके अनंत वीर्य (शक्ति) को देखकर अहंकार दोनों कंधों में से निकल गया एवं इन भुजाओं के बल से आप भव जल तिर गये उसी प्रकार आपकी पूजा के प्रभाव से मेरा भी अहं चला जाए एवं मेरी भी भुजाओं में संसार को तिर जाने की ताकत प्राप्त हो ।
5. शिखा
:
सिद्धशिला गुण उजली, लोकांते भगवंत
वसिया तिणे कारण भवि, शिरशिखा पूजत ॥15॥
उज्जवल स्फटिक वाली सिद्धशिला के ऊपर लोकांत भाग में आप जा बसे हैं अतः मुझे भी वह स्थान प्राप्त हो, इस भावना से मैं आपकी शिखा की पूजा करता हूँ ।
6. ललाट
:
तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत
त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत |16||
हे प्रभु! आप तीर्थंकर नाम कर्म के उदय से तीन लोक में पूज्य बनने से तीन लोक के तिलक समान हो, इसलिये आपके भाल में तिलक कर मैं भी अपना भाग्य आजमाना चाहता हूँ ।
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