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जैन तत्त्व दर्शन
(8) फल पूजा
फल पूजा का रहस्य
इस पूजा के द्वारा श्रेष्ठ ऐसे मोक्ष फल की प्राप्ति हो।
इंद्रादिक पूजा भणी, फल लावे धरी राग पुरूषोत्तम पूजी करी, मांगे शिव फल त्याग ||
ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरूषाय परमेश्वराय जन्म-जरा मृत्यु-निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा।
भावना हे प्रभु! आपकी ये समस्त पूजा करके मुझे कुछ प्राप्त तो करना ही है। किसी फल की चाहत से मैं यह सब कुछ कर रहा हुँऔर वही दर्शाने अभी यह फल लाया हूँ। मुझे चाहिए प्रभु ! मोक्षफल ! उससे कम मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। पत्र-पुष्प तो अनंत जन्मों में अनंत बार आपके प्रभाव से मुझे मिले हैं। अन्य सुख-सुविधाओं का तो मैने बहुत उपयोग किया है,
और इस कारण ही आपके समक्ष मोक्षफल की कामना व्यक्त कर रहा हूँ। और जब तक मुझे मोक्षफल प्राप्त न हो तब तक जनम जनम मुझे तेरी कृपा चाहिए। वह तो चाहिए ही। आज भी हे प्रभु! तेरी कृपा के झरने में स्नान और पान कर जिस मिठास और ताजगी की
अनुभूती होती है वैसी अनुभूति दुनिया के किसी और फल में या जल में नहीं होती। मुझे दृढ विश्वास है कि मेरी इस फल पूजा को तू असफल नहीं होने देगा। मोक्षफल को प्राप्त कराने वाली तेरी कृपा का स्वाद मुझे जन्मोजन्म तक मिलता रहे ऐसी कृपा करना।
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