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अर्हम् आत्मोन्नति-दिग्दर्शन.
--438 प्रणम्य शिरसा बारं वृद्धिचन्द्रं गुरुं तथा ।
आत्मोन्नत्यभिधां व्याख्यां कुर्वे गुर्जरभाषया॥ सुशील मुनिगण, विद्या प्रवर्ग तथा सद्गृहस्थो ! __ आजे आपनी सन्मुर हुँ क्षयोपशमानुसार स्वपरना कल्याणने अर्थे आत्मोन्नति र व्याख्यान करवाने उत्कण्ठित छं. यद्यपि व्याख्याननी प्राचीन पद्धति जुदा रूपमां छे. तो पण द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावने अनुसरी आ रूढि पण लाभ दायक छ तेम जाणी श्रोताजगोनी जिज्ञासा यथाशक्ति पूर्ण करवा प्रयत्न करीश. शरुमां मारे जणावq जोईए के आत्मोन्नति अर्थात् आत्मा संबन्ध । उन्नति, आत्मानुं मूल स्वरूप अथवा तो आत्माने स्वाधीन करवो ते आत्मोन्नति कही शकाय.