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________________ [ ५५ ] એ પછી સ્થા. સ્વાસી અમરસિહજીએ પૂછેલા ૧૦૦ પ્રશ્નના भने ५. मा. भ. श्रीमह् विनयानन्द्वसूरीश्व२५ (आत्माરામજી) મહારાજાએ આપેના એ ૧૦૦ પ્રશ્નનાના ૧૦૦ ઉત્તરા પ્રસિદ્ધિમાં કેવા પ્રકારે આવ્યા, તેના સંબધમાં ગપ્પદીપિકા सभीर' ना उत्त स्व. आ. भ. श्री विनयवदसमसूरि (ते વખતે મુનિ શ્રી વલ્લવિજયજી) મહારાજ એ પુસ્તિકાના ૧૨૬ મા પાને જણાવે છે કે,— " महाराजश्री के दीए उत्तर संबंधी बात मैंने किसी श्रावकके मुखसे सुणी के संवत १९३८ में महाराजश्री के तथा अमर सिंह ढुंढक के परस्पर प्रश्नोत्तर हुए थे तब मैने महाराजश्रीको अर्ज गुजारी के मैं वे प्रश्न देखने चाहता हुं तब महाराजश्रीने कृपा करके मंगवा के मेरेकुं दीए मैंने वे सर्व प्रश्नोत्तर बांच कर फिर अर्ज गुजारी के आप हुकम दो तो मेरी इच्छा. है कि इस 'गप्पदिपिका समीरमें वह सर्व प्रश्नोत्तर दाखल कर देउं. तब महराजजीने फरमाया कि कुछ जरूर नहि है, तेरेको बाहिये तो तुं अपने पास रख ले. मैने फेर अज करी के मेरी इच्छा तो जरूर छपवानेकी है क्योंकि इन 'प्रश्नोत्तर से' बहोत भव्य प्राणीयोंको लाभ प्राप्त होगा. तव मेरे पर कृपा करके फरमाया कि तेरी मरजी. अब मैंने यहां रज कर दीए हैं, सो वांचनेवालोंने दीर्घ दृष्टिके साथ अबलोकन कर लेने, "
SR No.006102
Book TitleSwapnadravya Devdravya J Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1978
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Devdravya
File Size7 MB
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