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[१] "इत्याचार्याष्टाधिकसहस्रश्रियायुक्ता श्रीमविजयानंदसरी श्वरस्यापरनाम्ना श्रीमदात्माराममहामुनेज्येष्ठशिष्यः श्रीमल्लक्ष्मी विजय: तच्छिष्यः श्रीमद्हर्ष विजयः तल्लघुशिष्येन वल्लभा. रव्यमुनिना कृता । गप्पदीपिकासमीरनाम्ना ग्रंथः ॥"
આથી જણાઈ આવે છે કે એ પુસ્તિકા સ્વ. આચાર્ય શ્રી વિજયવલ્લભસૂરિજી મહારાજે બનાવેલી છે; અને એ પુસ્તિકામાં તેમણે સ્થાનકવાસી સ્વ. સવામી અમરસિંહજીએ પૂ. સ્વ. આ. ભ. શ્રીમદ્ વિજયાનન્દસૂરીશ્વરજી મહારાજાને પૂછેલા સે પ્રશ્નોને સંગ્રહ કરેલો છે. એ પ્રશ્નોત્તરમાં નવમો પ્રનેત્તર નીચે જણાવ્યા મુજબને છે –
प्र० ९ सुपने उतारणे, घी बडाना, फिर लिलाम करना और दो तीन रुपैये मण बेचना, सो क्या भगवान का घी कौडा है सो लिखो. ___ उ० ९ स्वप्न उतारणे घी बोलना इत्यादिक धर्मकी प्रभावना
और जिन द्रव्यकी वृद्धिका हेतु है. धर्मकी प्रभावना करने से प्राणी तीर्थ कर गोत्र बांधता है यह कथन श्री ज्ञातासूत्र में है. और जिनद्रव्यकी वृद्धि करनेवाला भी तीर्थकर गोत्र बांधता है यह कथन श्री संबोधसत्तरी शास्त्रमैं है. और घीके बोलने वास्ते जो घी लिखा है तिसका उत्तर जैसे तुमारे आचारांगादि शाम भगवान्की वाणी दो वा च्यार रुपैयेकों बिकती है जैसे घीका भी मोल पड़ता है.