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________________ BUV ऐसी स्थितिमें आप यहाँ से पधार जायें तो धणी बिनाका खेत सूना' कहेवतकी ज्या यहाँ तो मिथ्यात्वका घोर अंधेरा छा जाय ! अतः कृपा करो महाराज । आपको यह आगामी चौमासा यहां ही करना पडेगा। अभी चौमासेमें भले ही देर हो ! किन्तु न जाने यह बवंडर कब उठे ? और बखेडा फेलादे ! आप अभी विहारका नाम ही न लो!!!" पूज्यश्री से घु महानुभाव ! बात आप लोगोंकी ठीकहै ! किन्तु एक ही गाँवमें बारबार चातुर्मास करना उचित नही, आप लोग यह तो समाचार लावें कि देहलीवाले पंडितजी अभी आ रहे हैं या चौमासेमें ? अभी आते हों तो वैशाख-जेठमें आठ-दश दिनमें फैसला हो जाये और मैं भी भीलवाडा तर्फ जा सकू! श्रावोस उह्य-बापजी सा. | ये पक्के समाचार तो नही मिले हैं, ये समाचार भी खानगी रुपमें हमको मिल गये तो हम आपके पास आये है अचानक हुमला करने की फिराकमें हैं, तो क्या ठिकाना कि कब ये लोग अपने शासन पर आक्रमण कर बैठे! आप तो शास्त्रोंके मर्मज्ञ हैं ! दुश्मन सिरपर झूम रहा है ! न जाने कब आक्रमण कर दे १ अतः कृपया आप शासनके लाभार्थ विहारका विचार छोड दें" आदि. न्यश्रीये ४थु 3-" जैसी क्षेत्र-स्पर्शना" मेम ४६ विहा२ स्थगित राज्या. જેઠ વદ લગભગમાં ખૂબ જ ધામધૂમ સાથે આર્યસમાજીઓએ દિલ્હીના પંડિતજીને નગરપ્રવેશ કરાવી રાજમહેલના ચેકમાં ભવ્યમંડપ બાંધી પંડિતજીનાં પ્રવચને શરૂ કરાવ્યાં. પંડિતજીએ પણ જાત-જાતના ચિત્ર-વિચિત્ર તર્કોથી મૂર્તિપૂજાની અસારતા તથા સનાતન ધમીઓની કેટલીક માન્યતાઓની પોકળતા પ્રતિપાદિત કરી ઉદયપુરની ધાર્મિક-પ્રજામાં જબરો ખળભળાટ મચાવી દીધો. જૈન શ્રી સંઘના આગેવાનોને સંપર્ક સાધી સનાતનીઓએ પૂ. શ્રી ઝવેરસાગરજી મ. ને विनव्या " केवल बुद्धि के बतंगडरुप अनेक कुतकों से भरपूर शब्दाडंबरवाले इन व्याख्यानोंसे मुग्ध जनता भ्रमित सी हो उठी है ! आप तो वादकला के अठंग निष्णात हैं, रतलाममें आपने अपनी जो प्रतिभा दिखाई थी, उसके भरोसे हम आपके पास आये हैं ” आदि, जयश्रीस मह्यं “महानुभाव ! आप लोगोंका कथन यथार्थ है। यह कलियुगकी महिमा है कि वादविवादके जंजालमें सत्यको छिपाया जाता है! भैया ! इस तरह कूटतोंके सहारे कभी असलीयत को छीपाई नहीं जा सकती! फिर भी आप लोगोंका हार्दिक-प्रेमका महत्व समझकर मैं अपनी पूरी शक्तियोंको इस बवंडर को हठाने हेतु लगानेको तैयार हूँ !” એમ કહી જાહેર વ્યાખ્યાને-પ્રશ્નોત્તરી-ચર્ચા સભા વગેરેથી આર્યસમાજી-સાહિત્યની પિકળતા તેમના કૂટ તર્કોના દેખાવતા ઘટાટો૫ પાછળ રહેલી નિર્બળતા આદિ જાહેર જનતા સમક્ષ મુકવા માટેની ક્રમબદ્ધ-જના બનાવી.
SR No.006069
Book TitleAgam Jyotirdhar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchansagar, Suryodaysagar, Abhaysagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1983
Total Pages468
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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